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पत्रीमार्गप्रदीपिका। राशि)के स्वामीसे सप्तमांशके स्वामी जानना ॥ ( यह विषम राशिका हो तो जिस राशिका है उसी राशिसे और समराशिका हो तो जिस राशिका ग्रह हो उस राशिसे जो सातमी राशि है उससे जितनी संख्याके सप्तमांशविभागमें ग्रह स्थित हो उतनी संख्यापर्यंत मिरनेसे जो राशि आवे उसका स्वामी सप्तमांशका स्वामी समझना) पूर्वोक्तषड्डोंमें ये सप्तमांश युक्त करनेसे सप्तवग होते हैं ऐसा मुनि लोगोंने कहा है ॥ २१ ॥
उदाहरण । सूर्य१०।१६।५३॥३९ यह कुंभराशिका है इसका स्वामी शनिगृहके स्वामी स्वामी जुआ-होरा, सूर्य होराके दूसरे विभाममें है और विषमराशिका है इस कारण सूर्यकी होराका स्वामी चंद्र हुआ. द्रेष्काण सर्प दूसरे द्रेष्काणविभागमें है इसलिये सूर्यकी राशि ११ कुंभसे पांचमी राशि ३ मिथुनका स्वामी बुध आया यह द्रेष्काणका स्वामी हुआ.सप्तमांश सूर्य विषम राशिका है और सप्तमांश विभागमें ये चार ४ संख्याक विभागमें है अतः सूर्यकी राशि २१ कुंभसे चारपर्यंत गिननेसे चौथी राशिरवृषभ आयी इसका स्वामी शुक्र सप्तमांशका स्वामी हुआ नवांश-सूर्य ६ छः संख्याके नवांशविभागमें है और कुंभराशिका है अतः तुलाराशीसे ६ छह संख्यातक गिननेसे १२ मीन राशि आयी इसका स्वामी गुरु है यह सूर्यके नवांशका स्वामी हुआ, द्वादशांश-सूर्य ७ सातसंख्याके द्वादशांश विभागमें है इसलिये अपनी राशि कुंभसे गिननेसे सातमी ७ राशि५सिंह आयी इसका स्वामी सूर्य द्वादशांशका स्वामी हुआ त्रिंशांश-सूर्य विषमराशिका है और १६ अंशका है इस लिये त्रिशांश विभागमें तीसरेटअंशके तमांश्वविमाग.. विभागमें है इसकारण विषमराशिके तीसरे विभागका स्वामी ८ २२१०२१।२५।३० गुरु सूर्यके त्रिंशांशका स्वामी हुआ,इसीप्रकार शेष चंद्रादि सर्वग्रहोंके सप्तवर्ग जानना, इति.
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१एक सप्तमांश विमाग ४ अंश १७ कलाका होता है।
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