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भाषाटीकासहितम् ।
(११७) ग्रह स्वराशिकी हद्दामें हो तो १५ पंदरह अंश, मित्र ग्रहकी हद्दामें ११॥ १५ सवाग्यारह अंश, समग्रहकी हद्दा ७३० साढ़ेसात अंश, शत्रु ग्रहको हद्दामें हो तो ३।४५ (पौनेचार अंश ) बल जानना ॥ २४ ॥
स्वद्रेष्काणे दश मित्रद्रेष्काणे सार्द्धनगाः समद्रेष्काणे । पञ्च शत्रुद्रेष्काणे साईयमा अंशाबलम् ॥२५॥ ग्रह स्वराशिके द्रेष्काणमें हो तो १० अंश, मित्रग्रहके द्रेष्काणमें हो तो ७।३० साढ़ेसात अंश, समयहके द्रेष्काणमें ५ पांच अंश, शत्रुग्रहके द्रेष्काणमें हो तो २।३० अढ़ाई अंश बल जानना ॥ २५ ॥
स्वनवांश पञ्च मित्रांशे पादोनवेदाः समांशे सार्धयमा
रिप्वंशे सपादैको बलम् ॥२६॥ ग्रह-स्वराशिके नवांशमें हो वो ५ पांच अंश, मित्रनवांशमें ॥४५ पौनेचार अंश, समनवांशमें हो तो २।३० ढाई अंश, शत्रुनवांशमें हो तो ११५ (सवा ) अंश बल जानना ॥ २६ ॥
पंचवर्गबलकोष्टकम् । स्व. मित्र | सम | शत्रु
स्व.
गृह
हदा.
द्रेष्का .
द्रेष्काण
नवां
नवांश
। ०४५/३०
पंचवर्गलैपने वेदोद्धते लब्धं विंशोपकात्मकं बलम् ॥ २७॥ पंचवर्गके बलके ऐक्य (योग) में ४ चारका भाग देना जो लब्ध आवे उसे विश्वात्मक बल जानना चाहिये ॥ २७ ॥
षडल्पोऽल्पबली व्यधिकः पूर्णबली ॥२८॥
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