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(३२) वर्षप्रदीपकम् । उदाहरण ।
। ग्रहोपरिग्रहाणां दृष्टिचक्रम् ।। दृश्य सूर्य १० । १६ । ५३ । र । चं! मं । बु । गु शु | स ३९ मेंसे पश्य चन्द्र १०।। २२ । ५६ को हीन किया, शेष ० । १६ । ३० । ४३ बचे, इसके राशि विवा अंशादिक १६ । ३० । ४३ को द्विगुण किये वो . ३३।१।२६ हुए, इनको ६० मेंसे सोधे तो २६ । ५९ कलादिक ३० सूर्यपर चन्द्रकी दृष्टि हुई । इसी वरह कमसे सर्व ग्रहोंपर ग्रहोंकी दृष्टि जानना और भावपर दृष्टि करना हो वो भावदृश्य ग्रहपश्य: समझके दृष्टि करे वो भावोपरि . ग्रहोंकी दृष्टि होती है।
४८ ४१ इति दृष्टिसाधनाध्यायश्चतुर्थः ॥४॥
अथ सहमाऽध्यायः। सर्वत्र सहमसाधने शुद्ध्याश्रयतः शोध्यहीने
क्षेपकयुक्त सहमसिद्धिः ॥१॥ सर्व सहमसाधनेमें शुद्ध्याश्रयमेंसे शोध्यको हीन करके क्षेपक युक्त करे वो सहम सिद्ध होता है ॥ १ ॥
शोध्यभादेरारभ्य शुद्धयाश्रयभादितोऽर्वाक्
क्षेपाभावे सिद्धसहमभं सैकं कार्यम् ॥२॥ शोध्यकी राशि अंशको आदिले शुझ्याश्रयकी राशि-अंशके पहले क्षेपककी १ जिसमें से हीन करना कहा हो वह शुद्धयाश्रय और जिसको हीन करनेको कहा है वह शोध ।
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