________________
भाषाटीकासहितम् । (१३१)
अथ दृष्टिसाधनमाह। पश्योनदृश्ये द्विदिग्भशेषे तद्विनांशा अर्धास्तिथिशुद्धास्तथा व्यंकशेषे भोग्यांशा एव वेदाष्टशेषे च सार्दा अंशाः पञ्च वेदतः शुद्धास्तथैव तकधिशेषेऽशा द्विनाः
षष्टिशुद्धाः कलाद्या दृष्टिरन्यः तदभावः ॥१॥ पश्यग्रहको हीन करना, दृश्यग्रहमेंसे दो २ राशि १० दशराशि शेष बचे तो राशिके विना अंशोंको आधे करना और १५ पंदरहमेंसे शोधना । ऐसे ही तीन ३ राशि,९नवराशि शेष बचे तो अंशाको तीस से शोधना, एवं ४ राशि, ८ आठराशि शेष बचे तो राशि विना अंशोंको ड्योढ़ा ( अंशोंको आधे करके उन्हीं अंशोंमें मिलाना ) करना और ४५ पैंतालीसमेंसे शोधना। इसी प्रकार ६ छः राशि अथवा शून्यराशि शेष बचे तो राशि विना अंशोंको दोगुणे कर ६० साठमेंसे शोधनेसे कलादिक दृष्टि होती है और इन उक्त राशियोंसे अन्य राशि शेष बचे तो दृष्टिका अभाव ( दृष्टि नहीं ) जानना ॥ १ ॥
३
१०
दृष्टिचक्रम् ।
। ९ । ४ । ८ ० । ६ अंशा- | अंशा- | अंशा- | अंशा- | अंशा- अंशा- | अंशा- अशाऽर्धा | | ३०/ ३० । डेढा | डेढा दिगुणा दिगुणा १५ शु. | १५शु. | शु. | शु. ४५ शु/४५ शु. | ६० शु. ६०शु.
!
---
--
१ जिस ग्रहपर दृष्टि करना हो वह दृश्य, जो देखता हो वह पश्य कहलाता है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com