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पत्रीमार्गप्रदीपिका। अंतर्दशामें युक्त करनेसे अंतर्दशाके उत्तीर्ण समयका शक और सूर्य होता है
और अन्तर्दशाके आरम्भका शक और सूर्य विदशामें युक्त करनेसे विदशाके उत्तीर्ण समयका शक और सूर्य होता है ॥ ५० ॥
उदाहरण। स्पष्ट है, विंशोत्तरी योगिनी अष्टोत्तरी दशाके चक्रमें शक और सूर्य युक्त किया है उन चक्रोंसे समझना ।
इति दशांतर्दशाविदशानयनप्रकारः।
अथागाम्यब्दसाधनम् । सौरवर्षदिनायेन हतेताब्दाः कतुल्यजः।
जन्मोत्थागणेनाव्या इज्याद्वर्षमुखे गणः॥५१॥ अब आगामि वर्ष साधन कहते हैं:-दिनादिक सौरवर्ष ३६५।१५।३१।३० से गतवर्षोंको गुणन करना और उसमें जन्मसमयका ब्रह्मतुल्यका सार्वयव अहर्गण युक्त करना, गुरुवारको आदि ले वर्षके आरम्भसमयका सावयव(वर्षप्रवेशकी इष्टपटी पल विपल सहित ) अहर्गण होगा ॥
विश्वनाथः। गणोधस्त्रियुक् स्वाक्षिगोंगांशयुक्तस्त्रिषदभक्त आप्तावमैर्युक्तऊर्ध्वाखरामैर्हता सैकशेष तिथिः स्यात्फलं मासवृन्दं ततोऽधो द्विनिघ्नात् ॥५२॥ रसागान्वितस्वेभनेत्रांक ९२८ लब्धा विहीनादगाङ्गा ६७ प्तभागोन ऊर्ध्वः ॥ हृतो भानुभिः १२: शेषकं यातमासा गताब्दाः फलं सेषुखेशः ११०५ शकः स्यात् ॥ ५३॥
अहर्गणको नीचे लिखके उसमें ३ तीन मिलाना और २ दो जगे लिखना, एक जगे स्थापन किये उसमें ६९२ छः सौ बानवेका भाग देना,लब्ध
१ ब्रह्मतुल्यका अहर्नण बनानेकी युक्ति आगे श्लोक ५४ में कही है। २ जन्मसमयकी इष्टघटी पल विपल सहित । ३ अहर्गणके सातका भाग देना शेष बचे तो गुरुवार ? बचे तो शुक्रवार २ बचे तो शनिवार इसक्रमसे गुरुवारको आदिले शेष बचे उसपर्यंत गिननेसे वर्षप्रवेशका बार होता है।
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