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भाषाटीकासहितम् ।
(१०७) गुणे करके नीचेकी कला मिलाना, फिर६ छःका भाग देना, एवं जो लब्ध कला आवे और शेष बचे उनको ६० गुणे करके विकला मिलाना, फिर ६ छःका भाग देना, जो लब्ध विकला आवे तथा शेष बचे उनको फिर६०गुणे करके६ छःका भाग देनेपर जो लब्ध आवे वह प्रतिविकला जानना ऐसे ६ छःका भाग देनेसे जो राश्यादिक फल आवे वह षष्ठांश होता है, उस षष्ठांशको लग्नमें पांचवार युक्त करना, तदनंतर फिर उस षष्ठांशको एकराशिमेंसे (१1०1०1०10) शोधके चतुर्थ भावमें पांच वार मिलावे तो लग्नको आदि ले संधिसहित ६ छठा भाव होता है ॥ २३ ॥
एते षड्भोनाः शेषाः षड्भावाः॥२४॥ इन छहों भावों से छः छः राशि हीन करनेसे शेष रहे हुए छहों भाव होते हैं ॥ २४ ॥
ग्रहः स्वाधिष्ठितभावारम्भसंधितो न्यूनो गतभावोत्थं ताग्विरामसंध्यधिक उत्तरभावोत्थं फलं प्रयच्छति ॥ २५॥
ग्रह जिस भावमें स्थित हो उस भावकी आरंभ (पहलेकी ) संघिसे न्यून (कमती) हो तो गतभावजनित ( पीछके भावका) फल देता है। ऐसे ही विराम (आगेको ) सन्धिसे अधिक हो तो उत्तर ( आगेके ) भावजानित फलको देता है ॥२५॥
ग्रहसंध्यंतरं नखघ्नं भावसंध्यंतरेणाप्तं फलं विंशोपकाः ॥२६॥
ग्रहसन्धिके अन्तरको ग्रह जिस भावमें स्थित हो उस भावसे कमती हो तो आरम्भसन्धिके साथ और भावसे ग्रह अधिक हो तो विराम (आगेकी) सन्धिके साथ अन्तर करके बीसगुणा करना और भावसन्धिके अन्तरका जिस सन्धिके ग्रहका अन्तर किया है उसी सन्धिके भावके साथ अन्वर करके भाग देना, जो फल आवे वह विंशोपका जानना और यदि ग्रह आरम्भसन्धिसे न्यून हो वा विराम सन्धिसे अधिक हो तो जिस भाव और सन्धिके बीचमें ग्रह हो उस भाव और सन्धिका अन्तर करके यह सन्धिके अन्तरमें भाग देना, अर्थात् आरम्भ सन्धिसे ग्रह न्यून हो तो पहलेके भाव और सन्धिसे अन्तर करना और ग्रह आगेकी सन्धिसे अधिक हो तो आगेके भावसे सन्धिका अन्तर करके बीसगुणे किये हुए ग्रह सन्धिके अन्तरमें भाग देनेपर जो फल आवे वह विंशोपका होता है ॥ २६ ॥
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