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(१२६) . वर्षभदीपकम् । से ६ संख्यापर्यन्त गिननेसें १२ मीनराशि हुई, इसका स्वामी गुरु सूर्यके नवांशका स्वामी हुआ, सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ को दशांश करना है, इस कारण १० दशगुणा किया १०० । १६० । ५३० । ३९० हुआ-विकला कला साठसे अधिक है इससे विकला ( ३९.) में साठका भाग दिया लब्ध ६ कलामें मिलाके (५३६) साठका भाग दे लब्ध ८ अंशमें युक्त किये, अंश तीससे अधिक हैं इस लिये अंश ( १६८) में ३० वीसका भाग दिया लब्ध ५ पांच राशिके अंक १०० में युक्त किया १०५ हुए राशि (१०५) में१२ बारहका भाग दिया, शेष ९।१८।५६ । ३० राश्यादिक बचा, यह सूर्यका दशांश हुआ। इसकी राशि १० का स्वामी शनि सूर्यके दशांशका स्वामी हुआ। एवं एकादशांशमें सूर्य १० । १६ । ५३ । ३९ को ११ ग्यारहसे गुणा किया ११०। १७६ । ५८३ । ४२९ हुआ । विकलाकलामें साठके अंशमें वीसकी राशिमें १२ बारहको क्रमसे भाग देनेसे शेष बचे ८।५। ५०९ यह सूर्यका एकादशांश स्पष्ट हुआ । इसकी राशि ९ धनका स्वामी गुरु सूर्यके एकादशांशका स्वामी हुआ-एवं अपनी राशि ११ कुम्भसे सूर्य ७ सातवें वादशांशमें है, इसलिये ७ संख्यापर्यन्त गिननेसे ५ सिंह राशि हुई, इसका स्वामी सूर्य सूर्यके द्वादशांशका स्वामी हुआ । इस प्रकार सूर्यके द्वादशवर्ग हुए ऐसे ही शेष ग्रहोंके वथा भावोंके और सहमादिकोंके द्वादशवर्ग जानना । सूर्यके द्वादश वर्गमें स्वराशिके वर्ग २ मित्रके २ शुभग्रहके ७ वर्ग हैं इनका योग किया ११ ग्यारह हुए, इस कारण सूर्य शुभफल देगा। ऐसे ही सर्वग्रहोंके शुभाशुभफल समझना चाहिये।
द्वादशवर्गवलउदाहरण । सूर्यके-गृह (राशि) का स्वामी शनि सूर्यके मित्र है, इस कारण १५० पन्दरहका बल गृहमें प्राप्त हुआ। एवं होरामें सूर्यकी होराका स्वामी चन्द्रसूर्यका शत्रु है, अवः५० बल प्राप्त हुआ एवं द्रेष्काणमें द्रेष्काणपति बुधका समराशिका बल १०० चतुर्थांशमें चतुर्थाशपति सूर्यका स्वका २०१०बल पंचमांशमें पंचमांशके स्वामी गुरुका शत्रुका ५०बल षष्ठांशमें षष्ठांशके स्वामी चन्द्रका शत्रु राशिका बल ५० सप्तमांश, सप्वमांराके वामी शुक्रका समराशिका २०१०
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