________________
भाषाटीकासहिता ।
( २१ )
अब तात्कालिक पंचधा मैत्री ज्ञान सोमदैवज्ञ कहते हैं--जिस ग्रह से २।३।४। १० । ११ । १२ वें स्थान में जो ग्रह स्थित हो वह मित्र जानना, शेष १|| ५६/७/८/९ स्थानमें गये हुए यह शत्रु जानना इसप्रकार मुनिलोगोंने तात्कालिक मित्र शत्रु कहे हैं ॥ १८ ॥
र. चं म. बु.
र. बु. मं शु.
शु. श. श.
र. वं.
म शु. श.
चं. बु. र. म.
श. गु.
०
अथ पञ्चधा मैत्रीचक्रम् |
र.
मं.
बु.
चं. मं. • र.
चं. गु.
खु. श.
O
च.
र.मं. बु.चं.
गु. बु शु. गु.
गु. शु. श. गु.
गु.
हुए इसीप्रकार चंद्रादि सर्व ग्रहोंके तात्कालिक मित्र शत्रु जानना इति । अधिमित्रसमत्वमेति मित्रं समखेटस्तु सुहृद्विपुत्वमेति ।
रिपुरेति समाधिशत्रुभावं खलु तत्कालजमित्रशत्रुभावात् ॥१९॥ नैसर्गमैत्रीका मित्र ग्रह तात्कालिक मैत्रीमें मित्र हो तो अधिभित्र और शत्रु हो तो समत्वभावको प्राप्त होता है ( मित्रमित्र - अधिमित्र, मित्रशत्रुसम होता है) और नैसर्गमैत्रीका समग्रह तात्कालिक मैत्रीमें मित्र हो तो मित्र, शत्रु हो तो शत्रुभावको प्राप्त होता है ( सममित्र--मित्र, समशत्रु - शत्रु होता है, एवं नैसर्गमैत्रीका शत्रु ग्रह तात्कालिक मैत्री में मित्र हो तो सम और शत्रु हो तो अधिशत्रुभावको प्राप्त होता है ( शत्रु मित्र-सम, सम शत्रु - अधिशत्रु होता है ।। १९ ॥ ॥
उदाहरण |
यहाँ नैसर्गमैत्री में सूर्य के चंद्र गुरु मित्र हैं ये चंद्र गुरु तात्कालिक अ. सु. बु. शु. धि मि मैत्री सूर्य के शत्रु हैं अतः चंद्र
शु.
श.
मं.
मित्र
र. मं. र.
गुरु पंचधामैत्री में सूर्यके सम हु एवं नैसर्गमैत्री भौम सूर्यका मित्र ह तात्कालिक मैत्री में भी मित्र है इस
वु अ. मं.
तात्कालिक मैत्रीचक्रम् |
गु.
शु.
र. बु. र. शु. बु.
च.
मं. श. म. चं.
.
श.गु. शु. श. श. मं.
चं. गु. र. बु.
बु.
·
र.
गु.
चं.
•
· गु. श. गु. •। पं. बु. छ. घ.
उदाहरण |
सूर्य से २ भौम ११ शनि १२
श. शुक्र स्थित हैं इस कारण ये सूर्यके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
र. चं
मं.
गु.
मित्र
मित्र हुए और १ बुध ६ गुरु ८
शत्र
चंद्रमा स्थित हैं ये सूर्यके शत्रु
सम.
शत्रु
लियं भौम सूर्यके अधिमित्र हुआ, पंचवामैत्री में और नैसर्गमैत्री में सूर्य के बुध सन यह बुध तात्कालिक मैत्री में सूर्यके शत्रु है अतः शत्रुभावको बुध प्राप्त हुआ,
www.umaragyanbhandar.com