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पत्रीमार्गपदीपिका। इसीप्रकार नैसर्गमैत्रीमें सूर्यके शुक्र, शनि शत्रु है ये तात्कालिक मैत्रीमें मित्र हैं इसलिये सूर्यके शनि, शुक्र पंचधा मैत्रीमें सम हुए ऐसेही शेष ग्रहोंको अधिमित्रादि जानना इति.
अथ षड्वर्गसाधनमाह केशवः। भेशोऽथान्दुहोरे अयुजि युजि शशिबध्नयोः स्वात्मजांकक्षैशाख्यंशा नवांशा अजमकरतुलाकर्कितोकांशकाः स्यात् । भौमार्कीज्यज्ञशुका अयुजि शर५शरा ५ टायद्विपंचांशनाथास्त्रिंशायुग्मे विलोमाः क्रमबलिन इमे षट् शुभैः सद्युगोर्चेः२०॥
अब केशवदैवज्ञका कहा हुआ षड्वर्गसाधन कहते हैं-राशियोंक स्वामी प्रथम श्लोक १६ में कहे हैं वे जानना। तदनंतर विषमराशिमें प्रथम विभागमें सूर्यकी, द्वितीयविभागमें चंद्रकी होरा जानना और सम राशिके प्रथम
१५/१० । अन विभागमें चंद्रकी, दूसरे विभागमें सूर्यकी होरा जानना, प्रथम १ [. चं. विषम . बि. स. सम पचपनवम९ राशिके स्वामी द्रेष्काणके स्वामी होते हैं (ग्रह प्रथम विभागमें १० अंशमें) हो तो अपनी राशिका स्वामी द्रेष्काणका स्वामी जानना--और ग्रह दूसरे विभागमें ( १० अंशसे अधिक २० अंशपर्यंत--) हो तो यह जिस राशिका हो उस राशिसे पांचों राशिका स्वामी द्रेष्काणका स्वामी होता है एवं ग्रह तृतीय द्रेष्काणमें (२० अंशसे अधिक ३० अंशपर्यंत) हो तो ग्रह जिस राशिका हो उस राशिसे ९ नवमराशिका स्वामी द्रेष्काणका स्वामी जानना । मेषमकर १०तुला७और कर्क४से नवांश जानना अर्थात् ग्रह मेषका हो तो मेषराशिसे, वृषभराशिका हो तो मकरराशिसे मिथुन राशिका हो तो तुलाराशिसे,कर्कराशिका हो तो कर्कराशिसे इसी प्रकार सिंहादि सर्व राशियों में जितनी संख्याके नवांशविभागमें यह होवें उतनी संख्यापर्यंत गिननेसे जो
१ होराका एक विभाग १५ पंद्रह अंशका होता है।
२ एक द्रेष्काणका विभाग दश १० अंशका होता है । ३ तीस अंशके ९ नवमें हिस्सेको नवांश कहते हैं, एक नवांश विभाग ३ अंश २० कलाका होता है।
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