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भाषाटीकासहितम् ।
( १४३ )
वर्षांगेशो राजा समयेशः सेनापतिर्मुन्थेशो मन्त्री जन्मांगेशः पुरेशस्त्रिराशिपो रससस्यधात्वधिप इत्येके ॥ १० ॥
इत्यब्देशनिर्णय|ऽध्यायः ॥ ६ ॥
वर्षलश राजा समयपति सेनाधिप मुन्थेश मन्त्री जन्मलग्नेश पुराधिप त्रिराशिपति रस धान्य धातु इनका अधिपति होता है यह किन्हीं आचार्योंका मत है ॥ १० ॥
उदाहरण |
इन पांचों अधिकारियोंमें शुक्र अधिक बली है और वर्षलनको मित्रदृष्टिसे देखता है, इसलिये वर्षेश्वर शुक्र पूर्ण बली हुआ.
इति श्रीज्योतिर्विद्वर- श्रीमन्महादेवकृतवर्षदीपके तदंगजश्रीनिवासविरचितायां सोदाहरणभाषाव्याख्यायामब्देशनिर्णयाध्यायः षष्ठः ॥ ६ ॥
पंचाधिकारी.
जन्मल. रा. प. श.
वर्षल रा.प. शु.
त्रि. रा. प. शु.
भुन्या. रा.प. शुः
सूर्य रा.प. श.
८ म.
११ पू.
११ पू.
११ पू.
अथ दशाविचारः ।
पू.
सलग्नखेटानां मध्ये यो न्यूनांशो भवेत्तस्यांशादयः प्रथमं लेख्याः १ अब दशाविचार कहते हैं: -- लग्नसहित सूर्यादि सात ही ग्रहोंमें जो ग्रह न्यून (अल्प) अंशका हो उसके अंशादि (अंश कला विकला ) प्रथम लिखना ॥ १ ॥ ततस्तदधिकांशानामंशादयः क्रमशो लेख्याः ॥ २॥
फिर उस ( अल्प अंश ) के ग्रहसे अधिक अधिक अंशके ग्रहोंके अंशादिक क्रमसे लिखना (अल्प अंशके ग्रहसे अधिक अंशके ग्रहोंके अंशादिक लिखना, तदनंतर उससे अधिक अंशके ग्रहके अंशादिक, फिर उससे अधिक के अंशादिक लिखना, इस क्रम से सबसे अधिक अंशके ग्रहके अंशपर्यंत लिखना चाहिये ) ॥ २ ॥
इमे हीनांशसंज्ञकाः ॥३॥
उक्त प्रकार लिखे हुए ग्रहोंके जो अंशादिक हैं उनको हीनांशसंज्ञक जानना चाहिये ॥ ३ ॥
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