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वर्षपदीपकम् । अर्थात् सूर्य ९, चन्द्र ३, मङ्गल ६, बुध १, गुरु ११,शुक्र ५, शनि १२ में स्थानमें हो तो दूसरा हर्षपद होता है ॥ ५ ॥
सूर्यारेज्या नराः शेषाः स्त्रियः ॥५२॥ सूर्य, मङ्गल, गुरु पुरुषग्रह, शेष (चन्द्र, बुध, शुक्र, शनि) स्त्रीयह जानना ॥ ५२॥
दिने पुमान रात्रौ स्त्री तृतीयम् ॥५३॥ दिनमें वर्ष प्रवेश हो वो पुरुषग्रह, रात्रिमें स्त्रीग्रह बलवान् जानना और तृवीय (वीसरा) हर्षपद होता है ॥ ५३॥ .... तुर्यभतस्त्रिषु त्रिषु नृस्त्रियौ तुर्यम् ॥ ५४॥
चतुर्थभावसे तीन तीन स्थानमें पुरुषग्रह और स्वीग्रह स्थित हो तो चतुर्थ हर्षपद होता है, अर्थात् ४।५।६। पुरुषग्रह, ७ । ८। ९ स्त्रीग्रह, १० । ११ । १२ पुरुषग्रह, १ । २।३ स्त्रीग्रह स्थित हो तो ४ हर्षपद जानना चाहिये ॥ ५४॥ चतुर्वेषु प्रत्येकं पंचविंशोपका बलम् ॥५५॥
इति बलाध्यायस्तृतीयः॥ ३ ॥ इन चार ही हर्षपदोंमें प्रत्येक (एक एकके प्रति) के पांच पांच विंशोपका बल जानना चाहिये ॥ ५५॥
____ हर्षपदचक्रम्. । 10.
प्रथम. .
. . . द्वितीय. ५० ५० ५०० तृतीय. ५.० ५००० ५ चतुर्थः । १०/ १०/० ५ ५ ५ । योग.]
उदाहरण । यहां शुक्र उच्चराशिका है, इसलिये प्रथम हर्षपदमें यह बलवान् हुआ। सूर्यको आदि ले कोई ग्रह द्वितीय हर्षपद स्थानोंमें नहीं है, अतः द्वितीय हर्षपद किसीका नहीं आया । दिनमें वर्षप्रवेश हुआ है इससे पुरुषग्रह (सूर्य मंगल गुरु) तूंतीयहर्ष बलदावा हुए । एवं चतुर्थस्थानसे वीन वीनमें पुरुष स्त्री यह देखनेसे ८ आठमें शनि स्त्री ग्रह और१०।११ में सूर्य मंगल पुरुषग्रह स्थित हैं, ये चतुर्थ हर्षपदमें बली हुए ॥ । इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेवकृतवर्षप्रदीपिकाख्यताजिकग्रन्ये तदङ्गजश्रीनिवासविरचितायां
सोदाहरणमाषाग्याल्पायां बलसाधनाध्यापस्वतीपः ॥३॥
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