Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 135
________________ (१३४) वर्षप्रदीपकम् । सदा मंदोनजीवे भ्राता ॥ १२॥ सदा अर्थात् दिनरात्रिमें गुरुमेंसे शनिको हीन करना भाता सहम होवा है ॥ १२॥ दिने चन्द्रोनेज्ये सार्के रात्रावर्कोनजीवे सेन्दौ गौरवम् ॥१३॥ दिनका इष्ट हो तो गुरुमेंसे चन्द्रको हीन करना और सूर्ययुक्त करना, रात्रिका इष्ट हो तो गुरुमेंसे सूर्यको हीन करना और चन्द्र युक्त करनेसे गौरवसहम होता है ॥ १३ ॥ भानूनार्कजे राजतातौ ॥ १४ ॥ ‘शनिमेंसे सूर्यको हीन करने ( निकालने ) से राज और वात (पिता) सहम होते हैं ॥ १४ ॥ शुक्रोनेन्दौ माता कान्तिश्च ॥ १५॥ चन्द्रमेंसे शुकको निकालनेसे मावा और कान्ति सहम होते हैं ॥ १५ ॥ इज्योनमन्दे जीवितोपायौ ॥१६॥ शनिमेंसे गुरुको हीन करनेसे जीवित और उपाय सहम होते हैं ॥ १६॥ ज्ञोनारे कर्म ॥१७॥ भौममेंसे बुधको घटानेसे कर्मसहम होता है ॥ १७ ॥ सदा चन्द्रोनांगे रोगः ॥ १८॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही लग्नमेंसे चन्द्रको हीन करनेसे रोगसहम होता है ॥ ३८॥ लग्रेपोनेन्दौ कामः काँगे तु सदा लग्नेशोनार्के ॥ १९॥ चन्द्रमेंसे लग्नके स्वामीको हीन करनेसे कामसहम होता है और कर्क लग्न हो तो सदा ( दिन रात्रिमें ) सूर्यमेंसे लग्नेशको हीन करनेसे कामसहम होता है ॥ १९॥ वक्रोनेज्ये कलिक्षमे ॥२०॥ गुरुमेंसे मंगलको हीन करनेसे कलि और क्षमा सहम होते हैं ॥२०॥ ... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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