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भाषाटीकासहितम् । शश्वञ्चन्द्रोनजीवशुक्रयोः पुत्रौ ॥१०॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा चन्द्रको हीन करना, गुरु और शुक्रमेंसे पुत्र पुत्री सहम होते हैं अर्थात् गुरुमेंसे चन्द्रको हीन करे तो पुत्रसहम और शुक्रमेंसे चन्द्रको घटावे तो पुत्रीसहम होता है ॥ ४० ॥
दिनेऽर्कोनस्वोच्चे रात्री चन्द्रोनस्वोच्चे मंडलेशः॥४१॥
दिनका इष्ट हो तो सूर्यको हीन करना अपने उच्च ( ० रा. १० अं० ) में से रात्रिसमयका इष्ट हो वो चन्द्रको हीन करना अपने उच्च (१ रा०३ अं०) मेंसे मंडलेशसहम होता है ॥ ४१॥
मन्दोनसाईत्रिमे जलपथः॥४२॥
शनिको हीन करना साढे तीन राशि ( ३ राशि १५ अंश) मेंसे जबपथसहम होता है ॥४२॥
मन्दोनपुण्ये बन्धनम् ॥ ४३॥ पुण्यसहममेंसे शनिको हीन करे वो बन्धन सहम होता है ॥ ४३ ॥ अर्कोनपुण्ये लाभान्वितेश्वः ॥४४॥ पुण्यसहममेंसे सूर्यको हीन करने और उसमें लाभ ११ वां भाव मिलाना अश्वसहम होगा ॥४४॥
सदा जीवोनेन्दौ गजः॥४५॥
सदा (दिनका इष्ट हो वा रात्रिका) चन्द्रमेंसे गुरुको हीन करे तो गजसहम होता है ॥ ४५॥
रिपुसहमोनांत्ये पशुः॥४६॥ १२ बारहवें भावमेंसे शत्रुसहमको हीन करे तो पशुसहम होता है ॥४६॥ शश्वत्कोणोनाङ्गारयोर्व्यसनकृषी ॥४७॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा शनिको लग्न और मंगलमेंसे हीन करनेसे व्यसन और कृषिसहम होता है अर्थात् लग्नमेंसे शनि हीन करनेसे व्यसन और भौममें से शनि हीन करनेसे कृषिसहम होता है ॥ ४७ ॥ सदा पुण्योनार्कजे मंदयुते बन्धमोक्षः ॥४८॥
सदा (दिनरात्रिमें ) पुण्य सहमको शनिमेसे हीन करना और उसमें शनि युक्त करनेसे बन्ध और मोक्ष सहम होता है ॥४८॥
सदेज्योनपुण्ये सारे दुःखम् ॥१९॥
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