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(१४६)
वर्षप्रदीपकम् । ध्रुवेण स्वस्वपात्यांशा हता दिनाया दशा ॥ १०॥ दिनादिक ध्रुवसे अपने अपने पात्यांशको गुणन करनेसे दिनादिक दशा होती है ।। १० ॥
उदाहरण । जैसे-दिनादिका ध्रुव १४ । २२। २३ । २५ से चन्द्रकी पात्यांश ०।२२ । ५६ को गुणन किये तो ५। २९ । ३७ । हुए, यह दिनादिक चन्द्रकी दशा हुई । इसी प्रकार सब ग्रहोंके पात्यांशको गुणन करके लानेपर नीचे चक्रके अनुसार दिनादिक दशा आयीं । इसका योग वर्षदिनके समान (बरोबर ) ३६० । । ० आया है, इसलिये दशा शुद्ध समझना।
दिनादिदशा स्पष्टाः। बु. | मैं. श. | ल. र. | गु. | शु.
मास
२७
-
३८
५८
५४
१९५६१९५६/१९५७१९५७१९५७/१९५७/१९५७१९५७
१९५७ संवत
५३ | २३
यस्य दशामानं पात्यांशैक्येन भक्तं तल्लब्धदिनायेन स्वस्वपात्यांशा हताः पाकेशतोऽन्तर्दशा दिनाद्याः॥ ११ ॥
जिस ग्रहमें अन्तर्दशा करना हो उसके दशामानमें (जितने दिनकी दशा हो उतने दिनकी संख्याको दशामान कहते हैं ) पात्यांशके ऐक्यका भाग देना, जो दिनादिक ध्रुव लब्ध आवे उसमे अपने अपने पात्यांशको गुणन करना । दशाके स्वामीको आदि ले (जिसमें अन्तर्दशा करना हो उस ग्रहकी प्रथम दशा उसके आगे जो ग्रह हो उसकी दूसरी दशा इस रीतिसे क्रमसे ) दिनादिक अन्तर्दशा जाननी चाहिये ॥११॥
मासष्ट करने के उदाहरण, जो गोमुनिका पुगाली गति लिली है उस तिते ।
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