Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 139
________________ (१३८) वर्षपदीपकम् । सदा ( दिनरात्रिके इष्टमें) पुण्यसहममेंसे गुरुको हीन करने और भौम मिलानेसे दुःख सहम होता है ॥ ४९ ॥ कुजोनमंदे उष्ट्रः ॥५॥ शनिमेंसे मंगलको निकालनेसे उष्ट्रसहम होता है ॥ ५० ॥ मंदोनार्के पितृव्यः॥५१॥ सूर्यमेंसे शनिको हीन करनेसे पितृव्यसहम होता है ॥ ५१ ॥ षष्ठेशोनषष्ठे सान्त्ये आखेटः ॥५२॥ छठे भावमेंसे छठे भावके स्वामीको हीन करके बारहवां भाव मिलानेसे आखेट (शिकार) सहम होता है ॥ ५२ ॥ ज्ञानेन्दौ भृत्यः ॥५३॥ बुधको चन्द्रमेंसे हीन करनेसे भृत्य सहम होता है ॥ ५३ ॥ अर्कोनेज्ये बुद्धिः॥५४॥ सूर्यको गुरुमेंसे हीन करनेसे बुद्धिसहम होता है ॥ ५४ ॥ सदा तुर्येशोनलग्ने निधिः॥५५॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा चतुर्थ भावके स्वामीको लग्नमेंसे हीन करनेसे निधि सहम होता है ॥ ५५ ॥ सदा शुकोनकोणे ऋणम् ॥५६॥ सदा दिनरातके इष्टमें शनी से शुक्रको हीन करनेसे ऋणसहम होता है ॥ ५६ ॥ सदा बुधोनेन्दौ सत्यम् ॥ १७ ॥ सदा (दिनरात्रिमें) बुधको चन्द्रमेंसे हीन करनेसे सत्यसहम होता है ॥५७॥ स्वेशेन शुभेन वाऽब्देशन वा युतं दृष्ट वा सहम स्वेशपाके वृद्धिमन्यथा विपरीतम् ॥१८॥ जो सहम अपने स्वामीसे अथवा शुभग्रहसे वा वर्षेश्वरसे युक्त हो वा दृष्ट हो तो वह अपने स्वामीकी दशामें फलवृद्धि करता है और विपरीत हो तो विपरीत फलकी वृद्धि करता है, अर्थात् अपने स्वामीसे शुभयहसे वा वर्षेश्वरसे युक्तका दृष्ट नहीं हो तो वह विपरीत ( उलटा ) फलकी वृद्धि अपने स्वामीकी दशामें करता है ॥ ५८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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