Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 136
________________ भाषाटीकासहितम् । (१३५) मन्दोनेज्ये ज्ञान्विते शास्त्रम् ॥२१॥ गुरुमेंसे शनिको हीन करना बुध मिलानेसे शास्त्रसहम होता है ॥२१ ॥ सदा चन्द्रोनशे बंधुः ॥२२॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही बुधर्मेसे चन्द्रको हीन करे वो बन्धु सहम होता है ॥ २२ ॥ ज्ञोनेन्दौ पराश्रयः ॥२३॥ चन्द्रमेंसे बुधको हीन करनेपर पराश्रय सहम होता है ॥ २३ ॥ सदा चन्द्रोनाष्टमे मन्दान्विते मृतिः ॥२४॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा चन्द्रको हीन करना और अष्टम भावमेंसे शनियुक्त करनेपर मृत्यु सहम होता है ॥ २४ ॥ सदा धर्मेशोनधर्मे धनेशोनधने लाभेशोनलाभे देशान्तरधनलाभाः २५ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही नवम भावमेंसे नवम भावके स्वामीको हीन करना, धनभावमेंसे धन भावके स्वामीको हीन करना, लाभभावमेंसे लाभभावके स्वामीको हीन करना देशान्तर १ धन २ लाभ ३ सहम होते हैं ॥ २५॥ सदा सूर्योनभृगौ परांगना ॥२६॥ दिनका इष्ट हो वा रात्रिका सदा ही शुक्रमेंसे सूर्यको हीन करनेसे परांगना (परस्त्री) सहम होता है ॥ २६ ॥ मन्दोनेन्दौं दास्यम् ॥२७॥ चन्द्रमेंसे शनिको हीन करना दास्य सहम होता है ॥ २७ ॥ सदा बुधोनचन्द्रे वाणिज्यम् ॥२८॥ सदा (दिनरात्रमें)चन्द्र से बुधको हीन करना वाणिज्यसहम होता है ॥२८॥ दिवार्कोनमन्दे सूर्यभपयोगे रात्री चन्द्रोनमन्दे चन्द्रःशयोगे कार्यसिद्धिः॥२९॥ दिनका इष्ट हो तो शनिमेंसे सूर्यको हीन करना और उसमें सूर्यकी राशिका स्वामी मिलाना, रात्रिसमयका इष्ट हो तो शनिमेसे चन्द्रको हीन करना और उसमें चन्द्रकी राशिका स्वामी मिलानेपर कार्यसिद्धि सहम होता है ॥ २९ ॥ १ जिस राशिमें स्थित हो उस राशिका स्वामी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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