Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 134
________________ मापाटीकासहितम् । (१३३) राशि नहीं आवे तो सिद्धसहमकी राशिमें एक युक्त करना, अर्थात् शुद्ध्याश्रय और शोध्यके बीचमें क्षेपक नहीं आवे तो एक मिलाना ॥२॥ क्षेपकानुक्तौ लग्नं योज्यम् ॥ ३॥ जिस सहमसाधनमें क्षेपक नहीं कहा हो उसमें लग्न युक्त करना ( लमको क्षेपक समझना) ॥ ३॥ समयानुक्तौ रात्रौ शोध्यशोधको व्यस्तो कायौँ ॥४॥ जिस सहमसाधनमें समय नहीं कहा हो उस सहमके साधनमें रात्रि वर्षप्रवेश हो तो शोध्यशोधकको व्यस्त ( उलटे ) करना अर्थात् शोध्यको शुद्ध्याश्रय और शुद्धयाश्रयको शोध्य मानके सहम करना ॥ ४॥ सूर्योने चन्द्रे पुण्यसहमः॥५॥ चन्द्रमेंसे सूर्यको हीन करनेसे पुण्यसहम होता है ॥ ५॥ चन्द्रोनार्के गुरुज्ञानज्ञातिसहमानि ॥६॥ चंद्रमाको सूर्यमेंसे हीन करनेसे गुरु, ज्ञान, ज्ञाति सहम होते हैं ॥ ६॥ पुण्योनेज्ये यशोदेहसैन्यघातम् ॥७॥ गुरुमेंसे पुण्यसहमको हीन करनेसे यश, देह, सैन्य और घातसहम होते हैं ॥ ७॥ पुण्योनज्ञाने शुक्रान्विते मित्रम् ॥ ८॥ पुण्यसहमको ज्ञानसहममेंसे हीन करके शुक्र मिलानेसे मित्र सहम होवा है ॥ ८॥ कुजोनपुण्ये माहात्म्यधैर्यशौर्यम् ॥ ९ ॥ पुण्यसहममेंसे मंगलको हीन करनेसे माहात्म्य, धैर्य, शौर्य सहम होते हैं ॥ ९ ॥ शुक्रोनमन्दे इच्छा ॥ १०॥ शुक्रको शनिमेंसे हीन करनेसे इच्छा सहम होता है ॥ १० ॥ लग्नशोनारे सामर्थ्य चेदंगेशो भौमस्तदा जीवाच्छोधनीयः ॥११॥ लग्न के स्वामीको भौममें से हीन करनेसे सामर्थ्य सहम होता है,यदि लग्नेश्वर भौम ही हो तो गुरुमेंसे लग्नेश्वरको हीन करना चाहिये ॥ ११ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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