Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 129
________________ (१२८)..' वर्षपदीपकम् । स्वभे शतं कलानां मित्रमे पंचाशत् शत्रुभे पञ्चविंशतिः॥४८॥ स्वराशिमें १०० सौ कला, मित्रराशिमें ५० कला, शत्रुराशिमें २५ पच्चीस कला, स्थिर-मैत्रीके मित्र शत्रुवशसे द्वादशवर्ग बल जानना ॥४८॥ स्व. । मि. श. १००/५० २५ ० ० | ०कला. तदैक्ये षष्टिभक्ते विंशोपका इत्येके ॥४९॥ स्थिरमैत्रीके मित्रशत्रुवशसे लाये हुए द्वादशवर्गके बलके ऐक्य (योग) में ६० साठका भाग देना, जो लब्ध आता है वह विंशोपकात्मक बल होता है, ऐसा अनेक आचार्योंका मत है ॥ ४९ ॥ उदाहरण । द्वादशवर्गमें सूर्यकी राशिका स्वामी शनि स्थिर मैत्रीमें सूर्यका शत्रु है, इसलिये सूर्यके गृहमें नीचे २५० कला बल लिखा, एवं होराका स्वामी चन्द्र मित्र है सूर्य के इस कारण ५० कला बल होरामें लिखा, द्रेष्काणका स्वामी बुध शत्रु है इससे शत्रुका२५ कला बल द्रेष्काणमें, चतुर्थांशमें सूर्य स्वराशिका है, अतः स्वका १०० कला बल, एवं पंचमांशमें-पंचमांशका स्वामी गुरु मित्र है, अतएव मित्रका ५० कला बल और षष्ठांशका स्वामी चन्द्र भी मित्र है, इसलिये षष्ठांशमें भी५० कला बल लिखा और सप्तमांशका स्वामी शत्रु है अतः सप्तमांशमें शत्रुका भी२५ कला बल, अष्टमांशका स्वामी भौम मित्र है इसलिये अष्टमांशमें मित्रका ५० कला बल । नवांशका स्वामी गुरु मित्र है इससे नवांशमें मित्रका बल५०कला और दशांशका स्वामी शनि सूर्यके शत्रु है इसवास्ते दशांशमें शत्रुका २५कला बल लिखा और एकादशांशका स्वामी गुरु मित्र तथा द्वादशांशका स्वामी सूर्य स्वका है, इसलिये एकादशांशमें मित्रका ५० कला बल और द्वादशांशमें स्वका १०० कला बल लिखा । यह द्वादशवर्ग बल हुआ,इसका योग किया ६०० आये ६० साठका भाग दिया लब्ध १०१० विशीपकात्मक सूर्यका द्वादशवर्ग बल हुआ। ऐसे ही शेष चन्द्रादिग्रहोंका द्वादशवर्गबल जानना ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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