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भाषाटीकासहितम् । (१२३ ) गुरु, चौथेमें बुध, पांचवेमें शुक्र, समरराशिमें विपरीत (१ शुक्र २ बुध, ३ गरु, ४ शनि, ५ मंगल ) पंचमांश के स्वामी होते हैं ॥ ३८ ॥
विषमः मेषाद्याः समभे तुलाद्याः षष्ठांशाः ॥३९॥
विषमराशिमें मेषराशिको आदि ले, समराशिमें तुलाराशिको आदि ले गिननेसे षष्ठांशके स्वामी होते हैं ॥ ३९ ॥
ओजभे स्वभाद्या युग्मः तत्सप्तमाद्याः सप्तमांशाः ॥४०॥ विषमराशिमें अपनी राशिको आदिले,समराशिमें अपनी राशिसे जो सातवीं राशि हो उसको आदि ले सप्तमांश विभागकी संख्यापर्यंत गिननेसे जो राशि आवे उसके स्वामी सप्तमांशका स्वामी होता है (यह जितनी संख्याके सप्तमांशविभागमें ही उतनी संख्यापर्यन्त विषमराशिमें अपनी राशिसे, सममें सातवीं राशिसे गिननसे सप्तमांश होता है ) ॥४०॥
चरमेऽजायाःस्थिरभे चापाद्या उभयभे सिंहाया अष्टमांशाः॥४॥ चर (१।४।७।१०) राशि मेषराशिको आदि ले, स्थिर (२। ५। ८।११) राशिमें धनराशिको आदि ले,द्विस्वभाव( ३ । ६ । ९।१२) राशिमें सिंहराशिको आदिले जितनी संख्याके अष्टमाँशविभागमें ग्रह हो उतनी संख्यापर्यंत गिननेसे जो राशि आवी है उसका स्वामी अष्टमांशका स्वामी होता है ॥४१॥
१ एक राशिके ६ छठे भागको कहते हैं-एक षष्ठांश ६ पांच अंशका होता है । २ एक राशिके ७ हिस्सेको कहते हैं-एक सप्तमांश विभाग ४ अंश १७ कलाका होता है। ३ एक राशिके ८ भागको कहते हैं-एक अष्टमांश विभाग ३ अंश ४५ कलाका होता है।
अष्टमांशविभाग.
सतमांशविभाग.
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