Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 111
________________ (११०) वर्षपदीपकम् । फिर ६ छका भाग दिया लब्ध २० प्रतिविकला आयी। ऐसे छःका भाग देके ०।१२।४३३३६।२० फल पांच लाये वो षष्ठांश हुआ, इसको लग्न ॥१२॥ २६।३५ में युक्त किये तो १।२५।१०।११।२० द्वितीय भावकी आरंभ संधि हुई । इसमें षष्ठांश०।१२।४३३३६।२०। युक्त किया तो २१७५३।४७।४० द्वितीय भाव हुआ। द्वितीय भावमें फिर षष्ठांश ०।१२।४३३३६।२० मिलाया तो २।२०३७।२४।० तृतीय भावकी आरम्भ और द्वितीय भावकी विराम संधि हुई । इसमें फिर षष्ठांश युक्त किया तो ३।३।२१।०१२० तृतीय भाव हुआ। इसमें फिर षष्ठांश०१२॥४३॥३६।२० युक्त किया ३।१६।४।३६१४० तृतीय भावकी विराम और चतुर्थ भावकी आरम्भ संधि हुई, ऐसे लग्नमें षष्ठांश पांचवार युक्त किया, फिर षष्ठांश ०।१२।४३३३६।२०को एक राशि०००। 010 मेंसे शोधा ०।१७।१६।२३।४० शेष बचे इनको चतुर्थ भावमें पांचवार युक्त किया तो लग्नादिक संधिसहित ६ छः भाव हुए, इन छः भावोंमेंसे ६ छः छः राशि घटायी तो शेषके ६ भाव हुए। ससंधयां द्वादशभावाः। | १ | सं. | २ | सं. | ३ | सं. । ४ । सं. | ५ | सं. ६ । पं. ८ س س پر २८ १६३ | २० wimmin | . .:. २०३।१६२८१६३ २०७। ३७२१ ४ । ४८४ | २१ | ४७ २४] . | १६ १३] १६] ० । वर्षाङ्गचक्रम्. चलितचक्रम्. भावमें जो जो राशि आवे वे चलितमें जार ३ शुरजालिखना फिर ग्रह लिखना । वहां सूर्य के मुंबुर वर्षकुंडली में १० दशम भावमें स्थित है। मं११चे || दशम भावकी विरामसंधिसे १०।१६।४ रा १०॥ से सूर्य अधिक है इसलिये यह | ९ | ११ ग्यारहवें भावका फल देगा। एवं श९ - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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