Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

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Page 89
________________ (८८) पत्रीमार्गप्रदीपिका। अंतर्दशामें युक्त करनेसे अंतर्दशाके उत्तीर्ण समयका शक और सूर्य होता है और अन्तर्दशाके आरम्भका शक और सूर्य विदशामें युक्त करनेसे विदशाके उत्तीर्ण समयका शक और सूर्य होता है ॥ ५० ॥ उदाहरण। स्पष्ट है, विंशोत्तरी योगिनी अष्टोत्तरी दशाके चक्रमें शक और सूर्य युक्त किया है उन चक्रोंसे समझना । इति दशांतर्दशाविदशानयनप्रकारः। अथागाम्यब्दसाधनम् । सौरवर्षदिनायेन हतेताब्दाः कतुल्यजः। जन्मोत्थागणेनाव्या इज्याद्वर्षमुखे गणः॥५१॥ अब आगामि वर्ष साधन कहते हैं:-दिनादिक सौरवर्ष ३६५।१५।३१।३० से गतवर्षोंको गुणन करना और उसमें जन्मसमयका ब्रह्मतुल्यका सार्वयव अहर्गण युक्त करना, गुरुवारको आदि ले वर्षके आरम्भसमयका सावयव(वर्षप्रवेशकी इष्टपटी पल विपल सहित ) अहर्गण होगा ॥ विश्वनाथः। गणोधस्त्रियुक् स्वाक्षिगोंगांशयुक्तस्त्रिषदभक्त आप्तावमैर्युक्तऊर्ध्वाखरामैर्हता सैकशेष तिथिः स्यात्फलं मासवृन्दं ततोऽधो द्विनिघ्नात् ॥५२॥ रसागान्वितस्वेभनेत्रांक ९२८ लब्धा विहीनादगाङ्गा ६७ प्तभागोन ऊर्ध्वः ॥ हृतो भानुभिः १२: शेषकं यातमासा गताब्दाः फलं सेषुखेशः ११०५ शकः स्यात् ॥ ५३॥ अहर्गणको नीचे लिखके उसमें ३ तीन मिलाना और २ दो जगे लिखना, एक जगे स्थापन किये उसमें ६९२ छः सौ बानवेका भाग देना,लब्ध १ ब्रह्मतुल्यका अहर्नण बनानेकी युक्ति आगे श्लोक ५४ में कही है। २ जन्मसमयकी इष्टघटी पल विपल सहित । ३ अहर्गणके सातका भाग देना शेष बचे तो गुरुवार ? बचे तो शुक्रवार २ बचे तो शनिवार इसक्रमसे गुरुवारको आदिले शेष बचे उसपर्यंत गिननेसे वर्षप्रवेशका बार होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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