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भाषाटीकासहितम् ।
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१६ अंशके समान अंश और वर्ष प्रवेशका वार बुध, अमांत माघकृष्ण १४ के दिन मिलता है, इसलिये संवत् १९५६ शके १८२१ प्रवर्तमानमें अमांत माघकृष्ण १४ चतुर्दशी बुधवार के दिन सूर्योदयसे इष्ट घटयादि ११ । ३० । १८ समय में वर्ष २९ प्रवेश हुआ, गताब्द २८ ॥
इति श्रीज्योतिर्विद्वरश्रीमन्महादेव कृतवर्ष प्रदीपिकाख्यताजिकग्रंथे तदङ्गजश्रीनिवासविरचितायां सोदाहरणभाषाव्याख्यायामन्दप्रवेशाध्यायः प्रथमः ॥ १ ॥
इष्टवारादिषु पातितगत पंक्तिवारादिषु शेषो दिनाद्यो धनम् ॥ १ ॥ अपने इष्ट वारादिकमेंसे पिछाड़ीकी गयी हुई समीपकी पंक्ति ( अवधि ) के वारादिक ( वार इष्ट घटी पल ) हीन करनेसे जो शेष बचे वह दिनादिक धन चालन होता है ॥ १ ॥
आगामिपंक्तिवारादिषु पातितेष्टवारादिषु शेषो दिनाद्यमृणम् ॥२॥ आगेकी पंक्तिके वारादिक (वार इष्ट घटी पल ) मेंसे पिछाडीके अपने इष्टवारादिक हीन करनेसे जो शेष बचे वह दिनादिक ऋण चालन होता है । अर्थात् अवधि के वारादिक मेंसे अपने वारादिक हीन करने से ऋण और अपने वारादिकर्मसे अवधिके वारादिक घटानेसे धन चालन होता है ॥ २ ॥
दिनाद्ये गतिने षष्टयाप्तेंऽशादिस्तेन पंक्तिस्थग्रहे संस्कृते स्पष्टः खगो वक्रे तु वैपरीत्यं संस्कृतौ ॥ ३ ॥
दिनादिक चालनको गतिसे गुणन करके ६० साठका भाग देना, जो अंशादिकफल ( अंश कला विकलात्मक ३ तीन फल ) आवे उनकी पंक्ति (अवधि) के ग्रहमें संस्कार करनेसे ( चालक धन हो तो युक्त और ऋण हो तो हीन करनेसे ) स्पष्ट ग्रह होता है और ग्रह वक्रगति हो तो उन्हीं अंशादिक फलोंका विपरीत संस्कार करना अर्थात् चालक धन हो तो ऋण और ऋण हो तो धन करना ॥ ३ ॥
गतर्क्षनाड्यः षष्टिशुद्धाः पृथक् स्थाप्याः ॥ ४ ॥
गत नक्षत्र ( जिस नक्षत्र में वर्षप्रवेश हो वह इष्ट नक्षत्र, उसके पहले बीते हुए नक्षत्र ) की घटी पलोंको साठमेंसे शोधकर दो जगे लिखना ॥ ४ ॥
१ साठका भाग देके अशादिक फल लानेकी रीति उदाहरणमें स्पष्ट लिखी है ।
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