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(१०२) वर्षपदीपकम् ।
स्वचरान युताः स्वदेशोदयाः ॥ १३ ॥ अपने गामके चरखंडा उक्त लंकोदय पलमें क्रमसे हीन और युक्त करनेसे
लंकोदयाः चरखंडा स्वदेशोदया. स्वदेशोदय (अपने गामका उदय) | म. ! २७८ | मी.। ५१ २२७ होता है, जैसे रतलामके चरखंडा | वृ. | २९९।
५१ । ४१ । १७ है इनको | मि | ३.३ | म. | १७ |
लंकोदयपलमें क्रमसे प्रथम हीन । क. | ३२३ | ध. | सिं. २९९
| किये, फिर युक्त किये वो नीचे वृ. ४१
३२९ | कोष्ठकमें लिखे हुए स्वदेशोदय हुए ऐसे ही प्रत्येक अभीष्ट गामके स्वदेशोदय जानना चाहिये ॥ १३ ॥
उदयास्त्रिंशदुद्धता मेषादीनां पलाया गतयः ॥ १४॥ उदयों (लंकोदय और स्वदेशोदय )की संख्या वीस ३०का भाग देनेपर जो आवे वह मेषादिक, राशियोंकी पलादिक गति होती है,अर्थात् स्वदेशोदयकी संख्या ३० तीसका भाग देनेसे स्वदेशक लनोंकी पलादिक गति, एवं लकोदयकी संख्या ३० तीसका भाग देनेसे लंकाके उदयोंकी पलादिक गति होती है ॥ १४ ॥
उदाहरण ।
हीन किये । युक्त कि
क.
मेष राशिके स्वदेशोदय २२७ में ३० तीसका भाग दिया लब्ध ७, शेष १७ बचे, इनको ६० साठगुणे किये १०२० हुए फिर ३० का भाग दिया, लब्ध ३४ हुए । यह मेष राशिके स्वदेशोदयकी पलादिक गति ७३४ हुई। ऐसे ही बारह राशियोंमें जानना चाहिये ॥
१ गणेशदैवज्ञः 'मेषादिगे सायनभागसूर्ये दिनार्द्धजा मा पलमा भवेत्सा । त्रिष्ठा हताःस्युर्दशभिर्भुजंगैर्दिग्भिश्चरार्द्धानि गुणोद्धृतान्त्या ॥ १ ॥" अर्थात् सायन मेषार्कके आरम्भ दिनमें मध्याह समयमें शंकुकी जो छाया हो वह पलभा होती है। जिस गामके चरखंड करना हो उस गामकी पलभाको तीन जगे लिखना, एक जगे १० दशगुणी, दूसरी जगे आठगुणी, तीसरी जगे १० दशगुणी करना, फिर ३ तीनका भाग देनेपर उस गागका चरखण्ड होता है।
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