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वर्षदीपकम् ।
सौरवर्षारंभाच्छकप्रवृत्तिवेदितव्या ॥३॥ सौरवर्षके आरम्भसे ( मेषसंक्रांति जिस दिन प्रवेश हो उस दिनसे) शककी प्रवृत्ति जानना ॥ तात्पर्य यह है कि चैत्रशुद्ध प्रतिपदासे "मधोः सितादेर्दिनमासवर्षयुगादिकानां युगपत्सवृत्तिः” इत्यादि वचनोंसे जो भी संवत् शककी प्रवृत्ति होती है तथापि “ वर्षायन युगपूर्वकमत्र सौरात् " इस वचनसे जबतक मेषसंक्रांति प्रवेश न हो तबतक शकप्रवेश नहीं होता, इस कारण मेषसंक्रांतिके प्रवेशके प्रथम और चैत्रशुद्ध १ प्रतिपदाके अनंतरका वर्ष करना हो वो पिछाडीके शकसे करना । जैसे संवत् १९५५ में मेषसंक्रांति वैशाखरुष्ण ६ षष्ठी भौमवारके दिन प्रवेश हुई है उसी दिनसे १८२० का शक प्रवेश हुआ इसलिये वर्षसाधनमें वैशाखकष्ण ६ षष्ठीके पहिले शक १८१९ ही मानके वर्ष करना ॥ ३ ॥
___ इष्टशके जनुः शकहीं गताब्दाः ॥४॥ अभीष्टशकमेंसे (जिस शकका वर्ष करवा हो उस शकमेंसे) जन्मसमयका शक हीन करनेसे शेष बचे वह गताब्द (गववर्ष) हो ॥ ४ ॥
जन्मार्कतुल्योऽर्को यत्समये वर्षप्रवेशस्तत्रैव ॥५॥ जन्मसमयके सूर्यके समान ( बराबरं ) सूर्य जिस दिन जिस समय आवे उस दिन उस समय ही वर्षप्रवेश होता है ॥५॥
याताब्दाः सत्ताधिकसहस्रहताः खानेभाप्ता जन्मवारादियुता वर्षप्रवेशवारादिबोधकाः॥६॥ गवान्दोको ( गववर्षोंको) १००७ एकहजार सावसे गुणे करना ८०० आठसौका भाग देना लब्ध आये हुए वार घटी पल विपलात्मक चार फलमें जन्म समयके वारादिक (वार इष्ट घटी पल विपल ) युक्त करना वर्षप्रवेशके वारादिक ( वार इष्ट घटी पल विपल ) का बोध हो अर्थात् (गत वर्षोंको१००७एकहजार सात गुणे करके८००आठसौका भाग देना लब्ध आवे वह वार जानना शेष बचे उनको६० साठ गुणे करना और८००का भाग देना लब्ध घटी आवे शेष बचे उनको६० साठ गुणे करना ८००का भाग देना,
१ सिद्धान्तशिरोमगौ-वैश्चक्रमोगोऽवर्ष प्रदिष्टमिति ॥
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