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पत्रीमार्गप्रदीपिका। आवे वह ग्रहकी वर्ष मास दिन घटी पल विपलात्मक मध्यायु समझना ॥३४ ॥ इसप्रकार उनसहित सुर्यादिग्रहोंकी मध्यायुसाधन करके स्पष्टायुसाधनके संस्कार आगे कहते हैं
स्थिरारिभे हरेज्यशं वक्रचारं विना ग्रहः।
शुक्रार्कजान्यस्त्वस्तस्य यद नीचदंगे दलम् ॥ ३५ ॥ वक्रगति ग्रहके विना जो ग्रह स्थिरमैत्रीमें (नैसर्ग-मैत्रीमें ) शत्रु राशिका हो उस ग्रहकी आयी हुई वर्षादि आयुमेंसे तृतीयांश ( अपना वीसरा हिस्सा) हीन करना और शुक्र शनिके विना अन्य (दूसरा ) ग्रह अस्तकाहो तो उसकी आयुको आधा करना, नीच राशिका ग्रह हो तो उसकी आयी हुई आयुका दल ( अई) करना ॥ ३५॥
वक्रोच्चगे तत्रिगुणं द्विनिघ्नं वर्गोत्तमस्वांशकभत्रिभागे । द्वित्रिप्रतायां त्रिगुणं सकृद्ध द्विव्यंशकोने द्विलवोनमायुः ॥३६॥ वक्रगति ग्रह हो वा उच्चराशिका हो वो उस ग्रहकी वर्षादि आयुको त्रिगुण (३ तीनगुणी) करना और वोचमी हो वा स्वनवांशका हो वा स्वराशिका हो वा स्वरेष्काणका यह हो तो आयी हुई वर्षादि आयुको द्विगुण (दोगुणी) करना और यदि जिस ग्रहकी वर्षादि आयुको द्विगुण करनेका और त्रिगुण करनेका दोनों योग आवे तो उस ग्रहकी आयुको पृकुक् पृथक् २ दोगुणी और ३तीनगुणी नहीं करना केवल १ एक ही बार त्रिगुण (तीनगुणी) करना । एवं ग्रहकी वर्षादि आयुर्मेसे द्वितीयांश और तृतीयांश दोनों घटानेके योग आवें वो वर्षादिक आयुमेंसे केवल एक ही बार द्वितीयांश ( अपना अर्धभाग) हीन करना ॥३६॥
वामं व्ययात सर्वदलत्रिपादं पंचाङ्गभागानशुभा हरन्ति ।
संतोऽर्द्धमई सबलम्बहूनामेकक्षगानामिति सत्यवाक्यम्॥३७॥ लमसे बारहमें १२ स्थानको आदि ले सप्तम स्थानपर्यंत उलटे १-आगे श्लोक ३९ में कह है कि जिस राशिका ग्रह हो उसी राशिके नवांशमें आवे तो उसे बगोतनी जानना।
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