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पत्रीमार्गप्रदीपिका । अन्यथा योगिनी कार्या सदा कार्या महादशा । अब दशाके योग कहते हैं-शुक्लपक्षका जन्म हो और उनमें सूर्यको होरा दिनमें जन्म हो तो विंशोत्तरी दशा करना. एवं कृष्णपक्षमें. जन्म
और लममें चंद्रकी होरा हो रात्रिसमयमें जन्म हुआ हो वो अष्टोत्तरी दशा करना ॥ ४५॥ इन दोनों योगोका संभव नहीं हो तो योगिनी दशा करना और महादशा सदा ( सर्वदा ) करना ॥
___ अथ दशाभुक्तभोग्यानयनमाह । चन्द्रस्य लिप्ताः खाभ्रेभै ८०० लब्धाः स्युर्गततारकाः॥४६॥ शेषा हताः स्वपाकाब्दैर्हारेणाप्ताः समादिकाः । गता दशा सा पाकाब्दे उनिता भोग्यसंज्ञिता ॥१७॥
अब दशाके भुक्त भोग्य लानेकी रीति कहते हैं-चंद्रमाकी कला करना आठसौका ८०० भाग देना, जो लब्ध आवे वह गतनक्षत्र जानना. शेष रहे कला उसको अपनी दशाके वर्षसे ( विंशोत्तरीके भुक्त भोग्य करना हो तो श्लोक ४२ के अनुसार कृत्तिकाको आदि ले गिननेसे जन्मनक्षत्र जिस ग्रहकी दशामें आया हो उस दशामें जन्म हुआ ऐसा जानना. जिस ग्रहकी दशामें जन्म हुआ उसके दशाके वर्ष जितने हों उतने वर्षसे और योगिनीके भुक्त भोग्य करना हो तो श्लोक ४४ के अनुसार जिस दशामें जन्म हुआ हो उसके वर्षसे, अष्टोत्तरी करना हो तो श्लोक ४३ के अनुसार जिस ग्रहकी दशामें जन्म हो उसकी जितने वर्षकी दशा हो उतने वर्षसे ) गुणी करना. हार ८०० का भाग देना. जोलब्ध आवे वह वर्ष जानना शेष बचे उनको१२बारह गुणे करना और८०० आठसौका भाग देना लब्ध मासआवे शेषको३० वीस गुणे करना ८०० आठसौका भाग देना लब्ध दिन आवे,शेष बचे उनको६०साठ गुणे करना फिर८०० आठसौका भाग देनाजो लब्ध आवेवह घटी जानना।शेष बचे उसको फिर६०साठ गुणा करना८००का भाग देना लब्ध आवे वह दल जानना। ऐसे आवे जो वर्षादिक वह गवदशा ( भुक्तदशा) हो उस भुक्तदशाको दशाके वर्षसे हीन करना (सोधना ) शेष बचे वह भोग्य दशा समझना ॥ ४६ ॥ ४७ ॥
१-विंशोत्तरी और योगिनीसे कुछ भिन्न रीति है इस कारण अष्टोत्तरीके भुक्तभोग्य लानेकी रीति अलग आगे लिखी है।
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