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भाषाटीकासहिवा।
(७५). और अभिजित् इन तीन नक्षत्रोंके ध्रुवखंड कलामेंसे सुधे हैं इसलिये ७ सातवर्ष ६छ:मास मिलाये सो वर्षादि ८।७।२७।५१।२५। शनिकी भुक्तदशा आयी इसको दशाके वर्ष १० मेंसे हीन की शेष १।४।२।८।३५वर्षादि भोग्य दशा हुई ॥ इति अष्टोत्तरीदशोदाहरणम् ॥
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अष्टोत्तरीदशाचक्रम. मं. भु.। मं..। मु. | श. | गु. । रा. । ८ । ८ । १७ । १० । १९ । १२ ।
| २२ ! ३२ | ५१ । ६३
वयोग
तवर्षादि
।
३९
३९
९३३/१९५०१९६० १९७९ १९९१ १७९८
८१८१५१८२५१८४४|१८५६
संवत् शक.
२३
उत्तीर्णाकं.
१८।१८।
अथान्तर्दशासाधनमाह। दशा दशाहता कार्या स्वस्वमानेन भाजिता।
लब्धमन्तर्दशा ज्ञेया वर्षाद्याः क्रमशो बुधैः॥१८॥ अब अंतर्दशा बनानेकी युक्ति कहते हैं-दशाके वर्षको दशाके वर्षसे गुणन करना और अपनी अपनी दशाके मानका भाग देना लब्ध वर्षमासादिक आवे वह क्रमसे अपनी अपनी दशामें पंडित लोगोंने अंतर्दशा जानना, अर्थात् विंशोत्तरी महादशामें जिस ग्रहमें अंतर्दशाचक्र बनाना हो उस ग्रहके दशाके वर्षको विंशोत्तरीके ९ नव ही ग्रहोंके दशाके. वर्षसे कमसे गुणन करना और विंशोत्तरी महादशाके मानका ( १२० एकसौ वीसका) भाग देना । एवं अष्टोत्तरीमें जिस ग्रहमें अन्तर्दशाचक्र बनाना हो उस ग्रहके दशाके वर्षको अष्टोत्तरीके आठ ही ग्रहोंके दशाके वर्षसे क्रमसे गुणन करना और अष्टोत्तरीके मानका ( १०८ एकसौ आठका ) भाग
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