Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ (६४) पत्रीमार्गप्रदीपिका। लग्ने बलाढये सहितं च वस्तुल्यैर्विलग्नस्य गृहविधेयम् । भागादिना भास्करसंगुणेन युक्तं दिनाथं भवति स्फुटं तत् ॥३८॥ लंग्न बलवान हो वो लग्नकी वर्षादि मध्यायुके वर्षके अंकमें लगकी राशिकी संख्याक समान (लग्न • राशिका हो तो • शून्य ९ राशिका हो तो ९ नव ऐसे जिस राशिका हो उतने ही) वर्ष युक्त करना और लपके अंशादिक ( अंश कला विकला) को १२ बारहसे गुणा करके उसी वर्षादि मध्यायुके दिनादिकमें युक्त करना, वह लगकी स्पष्टायु होगी और लग्न बलवान् नहीं हो वो जो मध्यायु आवे वही स्पष्टायु समझना ॥ ३८॥ चरभवनेष्वायशाःस्थिरेषु मध्या द्विस्वभावेष्वन्त्याः वर्गोत्तमाः॥३९॥ ___ अब वर्गोत्तमराशि कहते हैं:-चर(१।४।७।१०)राशियोंमें आय (प्रथम ३ ।२०) नवांशके अंश स्थिर (२।५।८ । ११) राशियोंमें मध्य (पांचवां१६। ४०) नवांशके अंश द्विस्वभाव (३।६।९। १२) राशियोंमें अंत्य ( नववां ३० । .) नवमांशके अंश वर्गोतमांश होते हैं, अर्थात् चरराशिका ग्रह प्रथम नवांशमें हो तो वर्गोत्तमी होवा है । एवं स्थिर राशिका ग्रह पांचवे नवांश १६६४० में हो तो वर्गोत्तमांशमें होता है और द्विस्वभाव राशिका ग्रह अंत्य नवांशमें ( २६१४० के उपरान्त ३०० पर्यंत नवम नवांशमें ) हो तो वह वर्गोत्तमांशमें होता है ।। ३९ ॥ स्वर्भकेंद्रोत्तमांशस्थाः स्वांशमित्रांशकान्विताः। परिपूर्णबलैर्युक्ताः स्वोच्चमूलत्रिकोणगाः ॥ ४० ॥ अब ग्रहोंका बल कहते हैं:-स्वराशिमें स्थित केंद्र (१।४।७।१०) स्थानमें स्थित, शुभग्रहोंके नवांशमें स्थित, स्वनवांशमें स्थित, मित्रनवांशयुक्त और अपनी उच्चराशि (श्लोक ३१ में कही है) स्थिव और मूलत्रिकोणराशिमें स्थित ग्रह परिपूर्ण बलवान होता है ॥ ४ ॥ १-आगे श्लोक ११ में कहा है। २-सारावल्याम्-"विंशतिरशाः सिंहे त्रिकोणमरे स्वभवनमर्कस्य । उच्च भागत्रितयं वृष इन्दोः स्पात्रिकोणमपरेऽसाः ॥१॥ द्वादशभागा मधे विकोणमपरे स्वभं तु भोमस्य । उचमयो पल्यापां बुषस्य. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162