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(सप यहाँकी उचनीयस्त नीचाः ॥ ३० भिणिकुभिः
(५८) पत्रीमार्गप्रदीपिका । केन्द्र होता है वह चेष्टाकेन्द्र ६ राशिसे अधिक हो तो १२ बारा राशियों से शोधना (निकालना); शेष बचे उसकी राशि एक मिलाना और अंशादिकको द्विगुण करे तो चेष्टारश्मि होती है ॥ ३० ॥
____ अथ ग्रहाणामुञ्चनीचराशीनाह । सूर्यात्स्युरुच्चाः क्रियगो२ मृगस्त्रीक्ष्किळ ४ ऽन्त्य१२ जूका ७
दशभि १० हुताशः ३ गजाश्वि-२८ भिबोणकुभिः १५शरैमैं २७ नखै-२० लवैरस्तगतास्तु नीचाः ॥ ३१ ॥ ___ अब ग्रहोंकी उच्चनीच राशिय कहते हैं:-मेष १ राशिके १० अंश पर्यव (सूर्य), वृषभ २ राशिके ३ अंशपर्यंत (चन्द्र), मकर १० राशिके २८ अंशपर्यंत (भौम), कन्या ६ राशिके १५ अंशपर्यंत (बुध), कर्क ४ राशिके ५ अंशपर्यंत (गुरु), मीन १२ राशिके २७ अंशपर्यंत (शुक्र), तुला ७ राशिके २० अंशपर्यंत (शनि)। सूर्यको आदिले ग्रह क्रमसे उच्चराशियोंके होते हैं और अपनी उच्चराशिसे सातमी राशिमें गये हुए नीचके होते हैं ॥ ३१ ॥
. उच्चनीचराशिचक्रम. | र । चं | मं बु | गु_ शु, । श। __ ३ १ । ९ ५ | ३ | ११ | ६ । । उच्चराशि |१०| ३ | २८ १५| ५ | २७ ! २० परमोच्चअंश..
नीचराशि. |१०! ३ | २८ | १५, ५ | २७२० परमनीचअंश.)
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अथ उच्चरश्मिसाधनमाह । ग्रहनीचांतरं कार्य षड्भादूनं यथा तथा । द्विघ्नोंशादिः सरूपं भमुच्चरश्मिरयं स्मृतः ॥ ३२ ॥ अब उच्चरश्मि करनेकी रीति कहते हैं:-जैसे छह राशिसे अल्पशेष रहते हो वैसे ही ग्रह और नीचके अंतर करना(ग्रहमेसे नीच हीन करनेसे ६ से अल्प रहे तो ग्रहमेसे नीच (हीन)करना और यदि नीचमेसे ग्रहहीन करनेसे ६ राशिसे अल्पशेष रहते हो तो नीचमेंसे ग्रहको हीन करना) शेष बचे राश्यादिककी राशिके अंकमे १ मिलाना और अंशादिकको द्विगुण करनेपर उच्चरश्मि होती है ॥ ३२॥
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