Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas
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(५२)
पत्रीमार्गप्रदीपिका । १२ । ११ । ६. बुधस ५। ११ । ६ । ३, शनिने १।४।७।१०।८।९।११, सर्यसे ३।६।१०।११।५,लग्नस३।११।६।१०।१स्थानमें शुफभल देता है,इन शुभ फलपदस्थानमें रेखा देना और शेष स्थानमें शून्य देनेसे भौमका अष्टवर्ग होता है२४
अथ चंद्रस्याष्टवर्गाकाः ४९. अथ भौमस्याष्टवर्गाकाः ३९ रचं में बु गु शु श ल. र च में। बु गु शु श ल.
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अथ बुधस्याष्टवर्गमाह । शुक्रादासुतधर्मलाभमृतिगः सौम्यः कुजास्तपःकेंद्रायाष्टधने स्वतोऽप्युपचयान्त्येकत्रिकोणे शुभः। कोणान्त्यारिभवे खे रिपुभवाष्टान्त्ये गुरोरिन्दुतः
खायाष्टारिसुखार्थगः स्वखभवाष्टकांबुषट्मूदयात् ॥२५॥ अब बुधका अष्टवर्ग कहते हैं:-- शुक्रसे बुध १।२।३ । ४ । ५।९। ११८ वें स्थानमें शुभ फल देता है और मंगल शानसे ९।१।४।७।१०।११ ८१२, बुधसे ३।६।१०।११ । १२॥ १।९।५,सर्यसे ९।५।१२।६। ११, गुरुसे ६।११। ८। १२, चंद्रसे १०।१३। ८।६।४।२, लग्नस २।१०।११।८।१।४ । ६ स्थानमें शुभफल देता है । इन उक्त स्थानोंमें रेखा देना और शेषस्थानमें बिंदु देनेसे बुधका अष्टवर्ग होता है ॥२५॥
__ अथ जीवस्याष्टवर्गमाह। स्वात्स्वायाष्टविकेंद्रे स्वनवदशभवारातिधीस्थश्च शुक्रालनाकेन्द्रायधीषट्स्वनवसु च कुजात्स्वाष्टकेंद्राय इज्यः। इन्दोर्चुनार्थकोणाप्तिषु सहजनवाष्टायकेन्द्रार्थगोऽर्काज्ज्ञात्कोणयायखायाम्बुधिरिपुषु शनेल्यंत्यधीपदसशस्त:२६
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