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भाषाटीका सहिता |
शम्भुहोरा प्रकाशादिग्रन्थों में लग्नाष्टवर्ग भी विशेष कहा है
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स्थानानि यान्युक्तानि तेषु रेखा अन्यत्र बिन्दुः ||२९॥ इति रेखाष्टकम् ।
प्रथम जिस ग्रहका अष्टवर्ग करना हो वह ग्रह जिस राशि में स्थित हो उस राशिको आदि ले जन्मकुंडली ग्रहसहित लिखना, तदनंतर अपने अपने अष्टवर्ग जो जो स्थान शुभफलप्रद कहे हैं उन उन स्थानोंमें रेखा लिखना और अन्य स्थानों में बिंदु (शून्य) लिखना । इस प्रकार सूर्य से लग्नपर्यंत आठ ही ग्रहोंके अष्टवर्ग बनाना, फिर बारहों राशियोंकी अष्टवर्गकी रेखाका योग पृथक् पृथक् करके अपनी अपनी रेखाका योग कुण्डली में लिखने से समुदायाष्टवर्ग होगा । तदनंतर इस समुदायाष्टवर्ग में मीने मेष वृषभ मिथुन राशिमें जितनी जितनी रेखा हों उन सब रेखाओंका योग करना । ये योग १२० एक सौ बीससे अधिक आवे तो प्रथम वयमें सौख्यार्थ विशेष प्राप्त होगा। एवं कर्क सिंह कन्या तुला राशिकी सब रेखाका योग १२० एक सौ बीस से अधिक आवे तो तरुण अवस्था में सुख अर्थप्राप्ति आदि विशेष होगा । इसीप्रकार वृश्विक धन मकर कुंभ राशियोंकी सब रेखाका योग १२० एकसौ बीससे अधिक आवे तो उत्तर वयमें सुख अर्थ प्राप्ति आदि शुभफल विशेष होगा और १२० एक सौ बीससे अल्परेखैक्य जिस अवस्थामें आवे उस अवस्थामें मध्यम फल होगा ऐसा जानना ॥ २९ ॥
१ शभुहोरा प्रकाशे - " मीनाद्यं मिथुनांतकं प्रथमकं प्रोक्तं वयः प्राक्तनैः कर्काद्यं वणिजांतकं तरुणता संज्ञञ्च मध्यं बुधैः । कुंभान्तं स्थविरांतकं च बहुभिर्यत्सत्फलैः संयुतं तत्सौख्यार्थविशेषदं बलयुते नेदं विशेषाच्छुभम् ॥ ११ ॥
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