Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( xii ) पांडुलिपि-विज्ञान का अध्ययन विश्वविद्यालय के स्तर के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी होता है । प्रत्येक शोध-संगोष्ठी में पांडुलिपि विषयक चर्चा किसी न किसी रूप में अवश्य होती है, पर सम्यक वैज्ञानिक ज्ञान के अभाव में सतही ही रह जाती है। इतिहास, साहित्य, समाज-शास्त्र, राजनीति-शास्त्र, आदि कितने ही ऐसे विषय हैं जिनमें किसी न किसी दृष्टि से पांडुलिपियों का उपयोग करना पड़ जाता है। साहित्य के अनुसंधानकर्ता का काम तो पांडुलिपियों के बिना चल ही नहीं सकता। विश्वविद्यालयों में अब पी-एच०डी० से पूर्व एम०फिल० के अध्ययन-अध्यापन का और विधान किया गया है। इसमें पी-एच० डी० के लिए परिपक्व अनुसंधान की योग्यता प्रदान कराने की व्यवस्था है । इस उपाधि के लिए पांडुलिपि-विज्ञान का अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए, ऐसा मैं मानता हूँ, अन्यथा एम० फिल० की उपाधि से वह लाभ नहीं मिल सकेगा जो अभीष्ट है। अनुसंधान की प्रक्रिया का ऐसे अध्ययन में अपना महत्त्व है पर अनुसंधान-प्रक्रिया के अन्तर्गत विविध विज्ञानों की सहायता अपेक्षित होती है और यह पांडुलिपि-विज्ञान ऐसा ही एक विज्ञान है । अतः इस पुस्तक की आवश्यकता स्वयंसिद्ध है ।। यों भी यह विषय अपने-आप में रोचक है, अतः मैं आशा करता हूँ कि इसका हिन्दी-जगत में स्वागत किया जायेगा । -सत्येन्द्र For Private and Personal Use Only

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