Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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अध्याय-1
विषय प्रवेश आचार्य हरिभद्र का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जैन-साहित्य विपुल और बहुआयामी है। इसमें आगम, आगमों की व्याख्याएँ एवं विविध विधाओं के आचार्यों के ग्रन्थ- सभी समाहित हैं। जैन-साहित्य में आगमों के उपदेष्टा के रूप में तीर्थंकर परमात्मा और उनके रचनाकार के रूप में गणधरों को माना गया है, किन्तु आगमों के पश्चात् की समस्त रचनाएँ, चाहे वे आगमिक-व्याख्याओं के रूप में, अथवा विविध विधाओं के स्वतंत्र ग्रन्थों के रूप में हों, उनके रचयिता जैन-आचार्य ही रहे हैं। इन जैन आचार्यों में कुछ जैन-आचार्य ऐसे भी हुए हैं, जिनका साहित्यिक अवदान विपुल और बहुआयामी है। जैन-आगम बहुआयामी है, उनमें विविध विषय उपलब्ध होते हैं, अतः उनके व्याख्याकार आचार्यों ने भी अपनी व्याख्याओं में जैन विद्या के उन विविध पक्षों को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है, फिर भी जैन-विद्या के विविध आयामों पर स्वतंत्र ग्रन्थ लिखने की दृष्टि से यदि कोई आचार्य हमें परिलक्षित होता है, तो वे आचार्य हरिभद्र ही हैं।
यद्यपि हरिभद्र के पूर्व दिगम्बर-परम्परा के आचार्य कुन्दकुन्द ने जैन-विद्या के कुछ पक्षों पर स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना की है, फिर भी उनके ग्रन्थ मुख्यतः निश्चयनय प्रधान तथा जैन-तत्त्वज्ञान और आचार से ही सम्बन्धित हैं। यद्यपि उन्होंने अष्टपाहुड में विविध पक्षों को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है, पर वे विविध पक्ष मूलतः जैन-तत्त्वज्ञान एवं आचार से ही सम्बन्धित प्रतीत होते हैं। आचार्य हरिभद्र ऐसे पहले आचार्य हैं, जिन्होंने जैन-विद्या के विविध पक्षों को लेकर स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना की है। यद्यपि आचार्य हरिभद्र ने विविध विधाओं से युक्त अनेक ग्रन्थ लिखे हैं, किन्तु इसके साथ ही उन्होंने आगमिक व्याख्याएँ भी लिखी हैं। दशवैकालिक-वृत्ति, आवश्यक-वृत्ति, अनुयोगद्वार-वृत्ति, नन्दी-वृत्ति, जीवाभिगम-सूत्र लघुवृत्ति, चैत्यवन्दनसूत्र-वृत्ति (ललितविस्तरा) आदि उनके व्याख्या सम्बन्धीव्र ग्रन्थ हैं।
इन व्याख्यात्मक ग्रन्थों के अतिरिक्त जो उनके ग्रन्थ हैं, उनमें दर्शन, आचार, विधि-विधान और योग सम्बन्धी ग्रन्थ आते हैं, किन्तु इसके अतिरिक्त उनके कुछ ग्रन्थ ऐसे भी हैं, जो स्वयं अपने-आप में बहुआयामी हैं। ऐसे ग्रन्थों में अक-षोडषक, विंशिका और पंचाशक प्रमुख हैं, जिनमें विविध विषयों को लेकर आचार्य हरिभद्र ने लेखन किया है। ये ग्रन्थ बहुआयामी तो हैं ही किन्तु साथ ही अपने विषयों को गहराई से प्रस्तुत भी करते हैं। इनमें आचार्य हरिभद्र की समीक्षात्मक दृष्टि परिलक्षित होती है। अष्टक
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