Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन
स्वयम्भू तिनको हमारा नमस्कार हो । जिन के प्रसाद कर अनेक भव्य जीव भवसागर से तिरे हैं फिर श्रीअजितनाथस्वामी जीते हैं वाह्य अभ्यन्तर शत्रु जिन्हों ने हमको रागादिक रहित करो ।तीजेसम्भव नाथ जिनकर जीवन को सुख होय और चौथे श्री अभिनन्दनस्वामी आनन्द के करनहारे हैं और पांचवें सुमति के देन हारे सुमतिनाथ मिथ्यात्व के नाशक हैं, और छटे श्रीपद्म प्रभु ऊगते सर्य की किर णों कर प्रफुल्लित कमल के समान हैं प्रभा जिनकी। सातवें श्रीसुपार्श्वनाथ स्वामी सर्व के बेत्ता सर्वज्ञ सवन के निकट वत्तीही हैं और शरदकी पूर्णमासी के चन्द्रमा समान है प्रभाजिनकी ऐसे आठवें श्रीचंद प्रभु ते हमारे भव ताप हरो। और प्रफुल्लित कुन्द के पुष्प समान उज्ज्वल हैं दन्त जिनके ऐसे नवमें श्रीपष्पदन्त जगत के कन्त हैं और दशवें श्री शीतलनाथ शुक्ल ध्यान के दाता परमइष्ट ते हमारे क्रोधा दिक अनिष्ट हरो। और जीवों को सकल कल्याण के कर्ता धर्मके उपदेशक ग्यारहवें श्रेयांसनाथ स्वामी ते हमको परम आनन्द करो और देवों कर पूज्य सन्तों के ईश्वर कर्म शत्रों के जीतने हारे बारहवें श्रीवासपूज्य स्वामी ते हमको निज वास देवो और संसारके मूल जो रागादि मल तिनसे अत्यन्त दर ऐसे तेरहवें श्रीविमलनाथ देव ते हमारे कलंक हरो और अनन्त ज्ञान के घरन हारे सुन्दर हैं दर्शन जि नका ऐसे चौदहवे श्रीअनन्तनाथ देवाधिदेव हमको अनन्त ज्ञान की प्राप्ति करो। और धर्मकी धुराके धारक पन्दरखें श्रीधर्मनाथ स्वामी हमारे अधर्म को हरकर परम धर्मकी प्राप्ति करो और जीते हैं ज्ञानावर णादिक शत्रु जिन्होंने ऐसे श्रीशांतिनाथ परमशान्त हमको शान्त भावकी प्राप्तिकरो। और कुंथु आदि सर्व जीवों के हितकारी सतरहवें श्रीकुंथुनाथ स्वामी हमको भ्रमरहित करो। समस्त क्लेश से रहित मोच
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