Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 11
________________ शरीर उसकी रचना आयुष्य गति आगति आदि विविध विषयो का ज्ञान दण्डक सूत्र के द्वारा लिखा गया है । तथा क्षेत्र एवं काल का ज्ञान को प्राप्त करने हेतु लघु संग्रहणी का आधार ही मुख्य है इस कारण उनके आधार पर क्षेत्र एवं काल का ज्ञान भी इस पुस्तक में अन्तर्निहित है । . चैत्यवंदन गुरुवंदन एवं प्रत्याख्यान का सूक्ष्म स्वरूप आदि का ज्ञान तीन भाष्य के द्वारा प्राप्त होता है इस पुस्तक में चैत्यवंदन के सूत्र पद वर्ण संपदा का परिचय वंदन के भेद प्रभेद स्वरूप तथा प्रत्याख्यान के शुद्ध अशुद्ध भेद का स्वरूप आदि अनेक विषय का संग्रह है । ___ जड एवं चैतन्य का स्वरूप. स्वभाव एवं विभाव दशा का ज्ञान प्राप्त करने में कर्मग्रन्थ मुख्य आधार है, उसके आधार को लक्ष में रखकर कर्म के भेद प्रभेद बंध उदय सत्ता आदि का समन्वय भी है। द्व्यानुयोग. गणितानुयोग, चारित्रानुयोग तीनो का संग्रह इस पुस्तक में है । विभाव दशा से विमुख होने में परिणति धर्म आवश्यक है । परिणति धर्म की प्राप्ति ज्ञान एवं क्रिया के आधार पर अवलंबित है इस हेतु से आप अज्ञान रूपी अंधकार को उन्मूलन करके ज्ञान रूपी दीपक सतेज बनावे । दीपक की ज्योत ज्यादा से ज्यादा प्रकाशमान होकर ज्योतिर्मय अवस्था को प्राप्त करने में ये पुस्तिका कारण बने । यह ही अपेक्षा । लि. आ. वि. श्री रत्नाकर सूरीश्वरजी म. सा. पदार्थ प्रदीप DO

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