Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 10
________________ प्रस्तावना अनादि काल से मानव का भौतिक युग' के प्रति आर्कषण सविशेष है । उस आकर्षण के कारण आध्यात्मिक ज्ञान से दिन प्रतिदिन विमुख होता जा रहा है । एसी परिस्थिति में मानव को मानवता एवं महात्मा के प्रति आकर्षण या लगाव करवाना हो तो कुछ न कुछ निमित्त की आवश्यकता रहती है, वर्तमान जगत में मानवी बुद्धि शाली है ज्ञान की ' प्राप्ति में पुरुषार्थ भी ज्यादा करता है लेकिन लक्ष भौतिक समाग्री हेतु। वह ही बुद्धि आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति आकर्षण एंव पुरुषार्थ करे तो इसी मानव को योगी बनने में ज्यादा समय नहिं लग सकता । योगी के प्रति रुचि पैदा करने में ज्ञान योग (सभी से विशिष्ट आकर्षण है तो) क्रिया योग भक्ति योग तीन योग का साधन उपलब्ध है। तीनों में विशेष उपकार करने वाला ज्ञान योग है, जो क्रिया योग एवं भक्ति योग में विकास करने में समर्थ है, इस हेतु से पदार्थ प्रदीप नाम के पुस्तिका आपके समक्ष रखने की तमन्ना हुई है । उस तमन्ना को साकार बनाने में आपका सहकार जरूरी है । पदार्थ प्रदीप पुस्तिका में जीव विचार के आधार से जीव के भेद प्रभेद का ज्ञान उस विषय को स्पष्टीकरण एवं पुष्टि हेतु भगवती सूत्र एवं प्रज्ञापना सूत्र आचारांग सूत्र आदि आगम ग्रंथो का आधार लिया गया एवं नवतत्व के पदार्थो का स्वरूप तथा अपने को जो प्राप्त हुआ पदार्थ प्रदीप

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