________________
नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण
उपधानश्रुत नामक नवें अध्ययन की नियुक्ति में बताया गया है कि जब जो तीर्थकर होते हैं, दे अपने तीर्थ में उपधानश्रुत अध्ययन में अपने तप:कर्म का वर्णन करते हैं। सभी तीर्थंकरों का तप:कर्म निरुपसर्ग तथा वर्धमान का तप:कर्म सोपसर्ग रहा।
द्वितीय श्रुतस्कंध का नाम आधार भी प्रसिद्ध है अत: नियुक्तिकार ने 'अग्ग' शब्द की निक्षेप के माध्यम से विस्तृत चर्चा की है। प्रारम्भ में आय रो के व्रथम श्रुतस्कंध के कौन से अध्ययन से कौन सी चूला निट है, इसका उल्लेख किया गया है। प्रथम चूला में पिंड. शय्या, ईमां, वस्त्र, पात्र. अवग्रह आदि के बारे में चर्च है। द्वितीय चला सप्तैकक में रूप पर आदि के निक्षेप हैं। तीसरी बला भावना की नियुक्ति में दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, वैराग्य आदि भावना का विस्तृत विवेचन है।
चौथी विमुक्ति चूला में बिमुक्ति अध्ययन के पांच अधिकारों की चर्चा करते हुए देशविमुक्त और सर्वविमुक्त का उल्लेख किया गया है। अंत में पायर्व निशीथ चूला का वर्णन आगे लिया जाएगा, ऐसी नियुक्तिकार ने प्रतिज्ञा की है। महापरिज्ञा अध्ययन एवं उसकी नियुक्ति
दिगम्बर परम्पर के अनुसार वीर-निर्वाग ६८३ वर्ष के बाद आचारांगधर का विच्छेद हो गया। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार आन्दरांग का पूर्ण रूप से विच्छेद नहीं हुआ लेकिन १८ हजार पद-परिनाण वाला वह आचारांग वर्तमान में बहुत अल्प पद-परिमाण में रह गया। इसमें अनेक संडित पद्य मिलते हैं, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कालान्तर में 'आयारधर' आचार्यों के अभाव अथवा विस्मृति वश इसका काफी अंशः लुप्त हो गया।
वर्तमान में इसका सातवां महापरिज्ञः अध्ययन विलुप्त है । निर्मुचित्त', चूर्णि एवं टीका' के अनुसार आचारांग का सातवां अध्ययन महागरिजा है जड़कि ठाणं और, समवाओ में नौवां तथा नंदी टीका एवं आवश्यक संग्रहणी में इसे आठवां अध्ययन माना है। सगवाओ के वृत्तिकार ने स्पष्ट करते हुए लिखः है कि महापरिहा अध्ययन वस्तुतः सातवां अध्ययन था लेकिन उसका विच्छेद हो गया इसलिए इसको अंत में रखा गया है। शूब्रिग और जेकोबी ने इसे सातवां अध्ययन नानः है।
विद्वानों के अनुसार इस अध्ययन की नियुक्ति लुप्त हो गयी अथवा नियुक्तिकार के समय तक यह अध्ययन लुप्त हो गया, जिससे इसकी नियुक्ति नहीं लिखी जा सकी. किन्तु हस्तप्रतियों में प्राप्त गाथाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नियुक्तिकार के समय तक महापरिज्ञा का अस्तित्व था। टीकाकार ने दोनों श्रुतस्कंधों के पश्चात् २६४-७० की सात गाथाएं दी हैं लेकिन प्रायः सभी हस्तप्रतियों में इस अध्ययन की अठारह नियुक्ति-थाएं मिलती हैं। ये गाथाएं अभी तक प्रकाश में नहीं आई थीं इसीलिए विद्वानों का ध्यान इस ओर आकृष्ट नहीं हो सका।
यह निश्चित है कि चूर्णिकार और टीकाकार के समक्ष इस अध्ययन की नियुक्तिगाथाएं नहीं थीं
१. अनि ३१ २ अचू पृ७। ३. आटी प्र. १७३। ४. ठाणं ९/२। ५. सम, ९/३।
६. नंदीहाटी प्र. ७६। ७ आवश्यकसंग्रहणी टी प ६६७.६६६ । ८. समटी. 7 ६७। ९ Acaranga sutra, preface page 261 १०. Sacred books of the east, Vo 22, page 49।