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निर्मुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण
६. धुत — निस्संगता का अवबोध ।
७ महापरिज्ञः -- गोह से उद्भूत परीवह और उपसर्गों को सहने की विधि |
८ विमोक्ष निर्माण अर्थात् अंतक्रिया की अराधना ।
९. उपधानश्रुत आह अध्ययन मे प्रतिपादित अर्थो का महावीर द्वारा अनुपालन | सनवायांग एवं नंद के अनुसार इम ग्रथ में अन-निर्ग्रन्थों के लिए ज्ञानादि पांच आधार शिक्षाविधे, विनय, विनय का फल, ग्रहण- असेवन रूप शिक्षा, भाषा-विवेक, चरणव्रतादि, करणपिंडविशुद्धि तथा संयम- यात्रा के निर्वाह हेतु अहार के विवेक का वर्णन है। इन सब बातों का नंदी सूत्रकार ने पांच आधार में समावेश कर दिया है।
आचार्य उम्पति ने में प्रत्येक अध्ययन का विषय संक्षेप में प्रतिपादित किया
१. षड्जीवनिकाय की यतना।
२. लौकिक संतान का गौरव त्यम् ।
३. शीत-उष्ण आदि परीयों पर विजय |
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दृढ़ श्रका |
५. संसार से उद्वेग ।
६. कर्मों को क्षीण करने का उपाय |
७. वैयावृत्त्य का उद्योग |
८. तप का अनुष्ठान ।
९ स्त्रीसंग का त्याग।
१०. विधि पूर्वक भिक्षा का ग्रहण ।
११. स्त्री, पशु, क्लीन आदि से रहित शय्या । १२. गति - शुद्धि ।
१४. वस्त्र की एष्णा- गट ।
१५. पात्र की एषणा-पद्धति ।
१६. अवग्रह-शृद्धि ।
१७. स्थान- शुद्धि ।
१८ निषद्या. शुद्धि !
१९. व्युत्सर्ग- शुद्धि ।
२०. शब्दासक्ति परित्याग :
२९. रूपासक्ति परित्याग |
२२ परक्रिया - वर्जन ।
२३. अन्योन्यकिय वर्जन । २४. पंच महाव्रतलों में दृढ़ता ।
२५. सर्वसंगों से विमुक्तता ।
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१३. भाषा - शुद्धि |
आचारांग में केवल आचार का ही वर्णन नहीं अपितु अध्यात्म प्रधान दर्शन का विशद विवेचन हुआ है । सूत्रकृतांग की भांति इसमें तर्क की प्रधानता नही अपितु आत्मानुभूति के स्वर अधिक हैं । आचारांग निर्युक्ति
आचारांगनियुक्ति की रचना का क्रम चौथा है लेकिन विषय निरूपण की दृष्टि से इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है । उत्तराध्ययननियुक्ति में निक्षेपों के वर्णन में प्रायः एकरूपता है, इससे पाठक को कोई नया ज्ञान प्राप्त नहीं होता लेकिन आवारांगनियुक्ति इसकी अपवाद है। इसमें चरण, दिशा, ब्रह्म गुण, मूल, कर्न, सम्यक् आदि शब्दों की निक्षेपपरक व्याख्या में अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों का प्रतिपादन हुआ
है ।
प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा की नियुक्ति में शस्त्र और परिज्ञा का विवेचन निःशस्त्रीकरण की
१. ८९, नंदी ८१ ।
२. प्रशमरतिप्रकरण ११४- १७ ।