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नियुक्तिपंचक समवाओ के वृत्तिकार ने स्पष्ट किया है कि बस्तुतः महापरिज्ञ. अध्ययन सातवां ही है लेकिन उसका विच्छेद हो गया इसलिए इतकी अंतिम कम में रखा है।
प्रथम श्रुतस्कंध का पद परिमाग नियुक्तिकार के समय तक अठारह हजार था। लेकिन कालान्तर में इसका लोप होता गय! अत: आज यह बहुत कम परिमाग में मिलता है। प्रथम श्रुटस्कंध के ५१ उद्देशक हैं। प्रारम्भ में आवारांग केवल नौ अन तक सीमित था लेकिन बाद में इसमें बूलिकाएं और जोड़ दी गयीं। चार चूल्गएं जुड़ने से इसका पद-परिमाण १८ हजार से बहु हो गया तथा पांचहीं चूला निशर जुड़ने से बहुतर हो गया।'
नंदी, समवाय आदि में जहां भी आचारांग के अध्ययन और उद्देशकों का वर्णन है, वहां केवल २५ अध्ययन और ८५ उद्देशकों का वर्णन मिलता है। निशीथ छब्बीसवें अध्ययन के रूप में अपना अस्तित्व रखता है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में निशीथ का स्वतंत्र अस्तित्व था लेकिन बाद में विषय-साम्य और इसके महत्त्व को बढ़ाने के लिए इसे आवारांग के साथ जोड़ दिया। इसका दूसरा नाम आचारप्रकल्प भी प्रसिद्ध है। द्वितीय श्रुसस्कंन की जांच चूलाओं के नाम नियुक्तिकार ने इस प्रकार बतलाये हैं।
जावोग्गह पडिमाओ, पढमा सत्तेक्कगा बिइयचूला ।
भावण विमुत्ति आयारपकप्पा तिन्नि इति पंच।। प्रथम चूला के सात अध्ययन इस प्रकार हैं
१. पिंडैषणा २. शय्या ३. ई- ४. भाषाणात ५. वस्त्रैषणा ६. पात्रैषग’ ७. अवग्रहप्रतिमा ।' द्वितीय चूलः के नाम सप्तकका है। उसके सात अध्ययन इस प्रकार हैं
१. स्थान-सप्तकका, २. निधीधिला (निशीधिला) सपौकका, ३. उच्चार-प्रस्रवण-सप्तकका, ४. पाब्द-सप्तकका, ५. रूप-सप्तैकका, ६. परकिया-सप्तकका, ७. अन्योन्यक्रिया-सप्तकका
चूर्णिकार ने रूप सप्तैकका को चौथा तथा शब्द-सप्तकका को पांचवां अध्ययन माना है। तीसरी चूला का भावना तथा चौथी धूला का विमुक्ति नामक एक ही अध्ययन है। इस प्रकार प्रथम श्रुतस्कंध के ९ तथा द्वितीय के ७+७+१+१=२५ । कुल मिलाकर आचारांग के २५ अध्ययन और ८५ उद्देशक हैं। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध की विषयवस्तु का नियुक्तिकार में संक्षेप में उल्लेख किया
१. शस्त्रपरिज्ञा--जीव-संयम का निरूपण । २. लोकविजय-कर्मबंध एवं कर्ममक्ति की प्रक्रिया का अवबोध। ३. शीतोष्णीय-सूख-दुःख की तितिक्षा का अवबोध । ४. सम्यक्त्व- सम्यक्त्व की दृढ़ता का निरूपण। ५. लोकतार-रत्नत्रय से युक्त होने की प्रक्रिया ।
१. समटी. .६७। २ आनि ११. कपा. भा. १ च पृ. ८५; आयारंगे अट्ठारहपदसहस्साणि। : सर ५१/१, आनि ३६७। . आने ११। - नदी ८१. सम. ८५/१।
६. अनि ३११ । ७. अनि ३१७ । ८. विस्तृत वर्णन हेतु देखें आनि ३१८-४२। ९. अनि ३६७. ३६८। १०. आगि ३३.३४।