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नियुक्तिपंचक दूसरी चूल समारतका प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा ने तीसरी चूला भावना तथ छठे धुत अध्ययन के दूसरे और चौथे उद्देशक ले चौथी निमुक्ति चूल निएद्ध है। पंचम चूला आचार प्रकल्प—निशीथ का निहग प्रत्याख्याना तृतीय वस्तु के आचार नमक कीसवें प्राभृत् से हुआ। इस प्रकार आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध से चारचूला का संग्रहण हुआ है।
तिहासिक माता के अनुसार आचार दूला का तांतरों और पैथी चूला स्थूलिभद्र की बहिन साध्वी यक्ष महविदेह क्षेत्र से सीधरस्वामी के पास से लाई थी। साध्वी यक्षा ने वहां से चार चूलाएं ग्रहण की थीं, उनमें दो दशबैकल्कि के स तथा दो आधारांग के साथ जोड़ी गयीं। डॉ. हर्मन जेकोबी के अनुसार आचराग प्रथम श्रुतरकंध मे गद्य के मध्य आने वाले पद्य उस समय के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों से उद्धृत किए गए हैं। रचनाकाल
आचारागनियुक्ति के अनुसार तीर्थ-प्रर्तन के समय सर्वप्रथम आचारांग की रचना हुई, उसके बाद अन्य अंगों की । चर्णिकार जिनदासगगी भी इस नत से सहमत है। एक अन्य मत का उल्लेख करते हुए चूर्णिकर कहते है कि आचारांग में स्थित होने पर ही शेष अंों का अध्ययन किया जाता है इसीलिए इसका प्रथम स्थान रखा है। नी चूर्णि के अनुसार पहले एर्दगत की देशना हुई इसलिए इनका नाम पूर्व पड़ा। बाद में गगधरें ने आच रांग के प्रथन क्रम में व्यवस्थित किया। अचार्य मलयगिरि ने भी स्थापना क्रम की दृष्टि से गचारांग को प्रथम अंग मना है = कि रचना के कम से।' मतान्तर प्रस्तुत करते हुए नंदी के चूर्णिकार कहते हैं कि तीर्थकारों ने पहले पूर्वो की देशन की और गणधरों ने भी पूर्वगत सूत्र को ही सर्वप्रथम ग्रथित किया : ___आचारांगनियुक्ति और नंदयूर्णि की विसंगति का परिहार करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ का मानना है कि संभव है नियुक्तिकार ने अंगों के नि,हण की प्रक्रिया का यह क्रम मान्य किया हो कि सर्वप्रथम आचारांग का निर्वृहण और स्थापन होता है तत्पश्चात् सूत्रकृत आदि अंगों का। इस संभावना को स्वीकार कर लेने पर दोनों धाराओं की बाह्य दूरी रहने पर भी आंतरिक दूरी सनाप्त हो जाती है।
वस्तुत: आचारांग को प्रथम स्थान देने का कारण नियुक्ति में यह बताया है कि इसमें मोक्ष का उपाय वर्णित है तथा इसे प्रवचन का सार कहा गया है। भाषा-शैली की दृष्टि से भी यह आगम प्राचीन प्रतीत होता है।
१. आनि ३०८-११. पंकमा २३ २ परिवाट पर्व ९/९७, ९८। ३. The sacred books of the east,
vo. xx ii introductionm p.48 , अनि । . अचू १३ सत्ग रत्र आयारस्स इत्थं पदम
5"वखंति, ततो सेसगाणं एक्कारसण्ह अंगाणं।
६. आचू पृ ४: तत्थ ठते सेसाणि आणि अहिज्जह
ते सो पदम कते। ७ नदीचूर्ण पृ. ७५ ८ गंदीनटी ८. २१६: म्यापनामधिकृत्य प्रधमङ्गम् । २. गंदीपि पृ. ७५ । १०. अ'चारांगभष्टम, भूमिका प्र. १७ । ११. आनि ९।