Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 18
________________ पड़े तो] (जं) जो (सव्वसत्तोवयारी) सब जीवों का हित करने वाला है [ऐसा] (सच्चं) सत्य (भास) वचन (हि) ही (भासेज) :. बोलना चाहिए। ___भावार्थ- वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य को सब सुख और सब कार्यों की सिद्धि कराने वाला एक शान्त-भावों से मौन रहना ही श्रेयस्कर है, किन्तु यदि बोलना पड़े तो जो सभी जीवों के लिए हितकर हो ऐसा सत्य वचन ही बोलना चाहिए । णाणं विना विवेगं हि, सुस्सरत्तं च धारणं । वादित्तं सुकवित्तं च, सच्चादो जीव पावदे ॥१५॥ अन्वयार्थ- (णाणं-विज्जा-विवेगं) ज्ञान, विद्या, विवेक (सुस्सरतं) सुस्वरत्व (धारणं) धारणा (वादित्तंवादित्व (च) और (सुकवित्तं) सुकवित्व (सच्चादो) सत्य से (हि) वस्तुत: (जीव) जीव (पावदे) पाता है । भावार्थ- ज्ञान-शास्त्रज्ञान, विद्या-विशेष गूढज्ञान, विवेकप्रयत्नशीलता युक्त बुद्धि, सुस्वरत्व, धारणा, वादित्व और सुकवित्व अर्थात् अच्छी कविता बनाने की क्षमता ये सभी बातें एक मात्र सत्य धर्म के प्रभाव से ही जीव प्राप्त करता है । मूगत्तं मदिवेकलं, मूढत्तं लोय-णिंदयं । बहिरत्तं च रोगत्तं, असच्चादो हि देहिणं ॥१६॥ अन्वयार्थ- (मूगत्तं) मूकपना (मदिवेकल्लं) बुद्धि की मन्दता (मूढत्तं) मूर्खपना, (लोय-णिंदयं) लोकनिन्द्यता (बहिरत्त) बधिरता (च) और (रोगत्त) रोगग्रस्तता (हि) वस्तुत: (असच्चादो) असत्य । से ही (देहिणं) देहधारियों को होती है । भावार्थ- मूकपना-बोल नहीं पाना, बुद्धि की मन्दतापागलपन, मूर्खता, ज्ञानहीनता, बहिरापन और हमेशा रोग ग्रस्तता ये सभी दोष मनुष्यों को असत्य बोलने से प्राप्त होते हैं । - ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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