Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 48
________________ हो जाता है (तत्थ) वहाँ (धम्म-समारंभो) धर्म का समारम्भ (संकप्पो) संकल्प (हि) निश्चयत: (णिप्फलो णो) निष्फल नहीं होता है। भावार्थ- लोक में यह आए दिन देखा जाता है कि काम अर्थात् विषय-वासनाओं तथा धन प्राप्ति के सन्दर्भ में किया गया महान् उद्योग भी मृत्यु हो जाने से, शरीर रोगी होने से, घर नष्ट हो जाने से, छापा पड़ जाने से निष्फल हो जाता है; किन्तु किए गए धर्म-कार्य और व्रत-नियमों के संकल्प कभी भी निष्फल नहीं होते। उनका शुभ फल कालान्तर में अवश्य ही प्राप्त होता है । अणिचाणिं सरीराणिं, विहवो णेव सस्सदो । णिचं सण्णिहिदो मिचू, कादव्वो धम्म-संगहो ॥२४॥ ___ अन्वयार्थ- (अणिचाणिं सरीराणिं) [ये] शरीर अनित्य हैं (विहवो सस्सदो णेव) वैभव शाश्वत नहीं है (मिचू णिचं सण्णिहिदो) मृत्यु हमेशा पीछे लगी हुई है, [इसलिए] (धम्म-संगहो) धर्मसंग्रह (कादव्वो) करना चाहिए । भावार्थ- ये दिखने वाले सुन्दर शरीर नष्ट होने वाले हैं, धन-सम्पत्ति, घर-परिवार और विशाल वैभव ये भी शाश्वत् नहीं हैं तथा जन्म से ही मृत्यु हमेशा पीछे लगी हुई है, इसलिए बुद्धिमान् जनों को चाहिए कि वे धर्म का संग्रह करें । सची-धार्मिक क्रियाओं के साथ आत्मरूप की पहचान भी करें । उज्जमो साहसं धीरं, बलं बुद्धिं परक्कमं । .. छचेदे जस्स विजेते, तस्स देवो वि किंकरो ॥२५॥ .. अन्वयार्थ- (उज्जमो साहसं धीरं बलं बुद्धिं परक्कम) उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि, पराक्रम (जस्स छच्चेदे विजंते) जिसके पास ये छह रहते हैं (तस्स देवो वि किंकरो) उसके देव भी किंकर होते हैं । ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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