Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 75
________________ अन्वयार्थ- (अजिण्णे भेसजणीरं) अजीर्ण में पानी औषधि है (जिण्णे णीरं बलप्पदं) जीर्ण में पानी बलप्रद है (भोयणे अमिदं णीरं) भोजन में पानी अमृत है [और] (भोयणंते विसं हवे) भोजन के अन्त में विष होता है । . भावार्थ- अजीर्ण-पेट की खराबी होने पर पानी पीना औषधि का काम करता है। जीर्ण-भोजन पच जाने के बाद पानी पीना बलबढ़ाने वाला है। भोजन के मध्य में पानी पीना अमृत के समान लाभकारी है तथा भोजन के अन्त में खूब पानी पीना जहर के समान हानिकारक है । इक्खुदंडं तिलं छुई, कंतं हेमं च मेदणिं । चंदनं दहि-तंबूलं, मद्दणं गुण-वड्डणं ॥८५॥ ____ अन्वयार्थ- (इक्खुदंडं तिलं छुई कंतं हेमं मेदणिं चंदनं दहि च तंबूलं) इक्षुदण्ड, तिल, क्षुद्र, स्त्री, स्वर्ण, धरती, चन्दन, दही और पान [इनके] (मद्दणं गुण-वडणं) मर्दन से गुण बढ़ते हैं। भावार्थ- गन्ना-ईख, तिल-एक प्रकार का तेल वाला धान्य, क्षुद्र-नीच मनुष्य, कान्ता-स्त्री, सोना, खेत, चन्दन, दही, और ताम्बूल-पान; इनको जितना-जितना मर्दित किया जाता है, उतने इनके गुण बढ़ते जाते हैं । मादुव्व पर-णारीओ, परदव्वाणि लोट्ठिव । अप्पव्व सव्वभूदाणि, जो पस्सेदि स पंडिदो ॥८६॥ अन्वयार्थ- (मादुव्व पर-णारीओ) परस्त्री को माता के समान (परदव्वाणि लोटिव) परधन को पत्थर के समान (अप्पव्व सव्वभूदाणि) अपने समान सभी जीवों को (जो) जो (पस्सेदि) देखता है (स) वह (पंडिदो) पण्डित है । __भावार्थ- जो बुद्धिमान गृहस्थ दूसरों की स्त्रियों को माता के समान अथवा अपने से उम्र में बड़ी स्त्रियों को माँ के समान, बराबर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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