Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 94
________________ अन्वयार्थ- (जेण) जिनके द्वारा (णियं बोहमयेण) आत्मीय ज्ञानयुक्त बोध से (उवदेसिदा) उपदेशित किए गए (लोगा) लोकजन (केइं) कितने ही (मोक्खमग्गे) मोक्ष मार्ग में [तथा] (केइं) कितने ही (सुगिहत्थमग्गे) सद्गृहस्थ मार्ग में (पविठ्ठा) प्रविष्ट हुए [उन] (णमि) नमिनाथ जिनेन्द्र को (भावेहि) भाव पूर्वक (सिरसा) सिर झुकाकर (णमामि) नमन करता हूँ। महाणुभावो सग्गुण-णिहाणो, हलिंद-चक्किंद-देविंद-पुत्रो । कुमारकाले चइदूर्ण सव्वं, णिग्गंथदेवं पणमामि णेमिं ॥२२॥ __ अन्वयार्थ- (कुमारकाले हि) कुमार काल में ही (सव्वं) सब कुछ (चइदूणं) छोड़कर [जो] (महाणुभावो) महानुभाव (सगुण-णिहाणो) सद्गुण-निधान (हलिंद-चक्किंद-देविंद-पुज्जो) हलीन्द्र-बलभद्र, चक्रीन्द्र-चक्रवर्ती अर्द्धचक्रवर्ती [तथा] देवेन्द्रसौधर्मेन्द्र आदि से पूज्य [हुए उन] (णिग्गंथदेवं) निग्रंथदेव (णेमि) नेमिनाथ जिनेन्द्र को (पणमामि) प्रणाम करता हूँ। उवसग्गजेदा मग्गस्सणेदा, कोहादि हंता य कम्माण भेदा । जीवाण दुक्खांण हत्ता-विहत्ता, विग्घावहारी पणमाणि पासं।२३। अन्वयार्थ- (उवसग्गजेदा) उपसर्ग विजेता (मग्गस्सणेदा) मोक्षमार्ग के नेता (कोहादि हंता) क्रोधादि का नाश करने वाले (कम्माण भेदा) कर्मों को भेदने वाले (य) और (जीवाण दुक्खाण हत्ता-विहत्ता) जीवों के दु:खों को नष्ट-विनष्ट करने वाले (विग्घावहारी पणमाणि पास) विघ्नहारी पार्श्वनाथ भगवान् को [मैं] (पणमामि) प्रणाम करता हूँ। णिरबेक्ख बंधू भव्वाण-इंदू, भवरोग वेनं वच्छल्ल सिंधू । करुणा सु-धम्म जेणप्पणीदं, तं वड्ढमाणं पणमामि वीरं ॥२४॥ अन्वयार्थ- (णिरबेक्ख बंधू) निरपेक्ष बंधू (भव्वाण-इंदू) भव्य जीव रूपी कमलों के लिए चन्द्रमा (भवरोग वेजं) भव रोग शमनार्थ वैद्य (वच्छल्ल सिंधू) वात्सल्य के महासागर [तथा] (जेण) ८३, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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