Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 95
________________ जिन्होंने (करूणा सु-धम्मं पणीदं) करूणामय सुधर्म अर्थात् अहिंसाधर्म का प्रतिपादन किया (तं) उन (वीरं वड्डमाणं) वीर वर्द्धमान् को (पणमामि) प्रणाम करता हूँ। इणमो थुदिं जो णिचं, पढेदि वा सुणेदि वा । सग्ग-मोक्खं च पावेदि, सुलीणो ण हि संसयो । अन्वयार्थ- (इणमो थुदि) इस स्तुति को (जो) जो (णिचं) नित्य (पढेदि) पढ़ता है (सुणेदि) सुनता है (वा) अथवा [इसमें] (सुलीणो) अच्छी तरह लीन होता है [वह] (हि) निश्चय से (सग्गमोक्खं च) स्वर्ग और मोक्ष को (पावेदि) पाता है [इस वचन में] (ण संसयो) संशय नहीं है । तित्थयर त्थव तित्थयरं चउवीस णमो-२ उसहादि महावीर णमो-२ उसह-अजिद-संभव जिणसामि अहिणंदण सुमदिं सिवगामि। पोम्म-सुपासं चंद णमो । तित्थयरं. ||१|| पुप्फदंत-सीयल-सेयं जिण वासुपुज्ज विमलणाहं जिण । णंत धम्म जिण संति णमो । तित्थयरं. ||२|| कुंथु अरह मल्लिं मुणिरायं मुणि-सुव्वय-णमि-णेमिं पायं । पासणाह महावीर णमो । तित्थयर, ||३|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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