Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 92
________________ - अन्वयार्थ- (जेण) जिन्होंने (झाणग्गिणा) ध्यानाग्नि से (कम्मं डहिऊण) कर्म जलाकर (अप्पसरूवत्त) आत्मस्वरूपत्व (धम्म) धर्म को (संपत्त) प्राप्त किया [उन] (अणंत जीवाण) अनंतजीवों का (कल्लाण कत्तं) कल्याण करने वाले (गुण णंत पत्तं) अनन्तगुणों को प्राप्त (णतं णमामि) अनंतनाथ जिनेन्द्र को [मैं] नमन करता हूँ। अभिंतरं बज्झमणेग-भेदं, परिग्गहं सव्व चत्तूण सम्म । धम्मोवदिटुं च सम्मग्गसिटुं, धम्मस्स तं धम्मणाहं णमामि ॥१५॥ अन्वयार्थ- [जिन्होंने] (अभिंतरं बज्झमणेग-भेदं) आभ्यन्तर [और] बाह्य के अनेक भेदों से युक्त (सव्व परिग्गह) सभी परिग्रह को (सम्मं चत्तूण) पूरी तरह छोड़कर (धम्मोवदि8) धर्मोपदेश दिया (च) और (सम्मग्गसिटुं) सन्मार्ग दिखाया (धम्मस्स) धर्म की प्राप्ति के लिए [मैं] (तं) उन (धम्मणाहं) धर्मनाथ जिनेन्द्र को (णमामि) नमन करता हूँ ।। भडो य उडभड सिवसाहणस्स, कामादि हंता दुहणासणस्स । णिवाहिवं मयणं तित्थणाहं, णिचं णमामि सिरि संतिणाहं ॥१६॥ अन्वयार्थ- (सिवसाहणस्स) शिव-साधन के लिए (य) और (दुहणासणस्स) दु:ख नष्ट करने के लिए (कामादि हंता) कामादि दुर्भावों को नष्ट करने वाले (उब्भड भडो) उद्भट भट (णिवाहिवं मयणं तित्थणाह) चक्रवर्ती, कामदेव, तीर्थंकर [इन पुण्य पदों से युक्त] (सिरि संतिणाह) श्री शान्तिनाथ को [मैं] (णिचं) नित्य (णमामि) नमन करता हूँ | पसंसिदो तोसदि णो हरिस्सं, विराहिदो जो ण करेदि रोसं । संपुण्ण सीलाण गुणाण पत्तं, सिरि-कुंथुणाहं वंदामि णिच्चं ॥१७॥ अन्ययार्थ- (जो) जो (पसंदिदो) प्रशंसा करने पर (तोसदि णो हरिस्सं) न तुष्ट होते हैं, न हर्षित [तथा] (विराहिदो) विराधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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