Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 90
________________ अन्वयार्थ- (एगंतधम्मो हि मिच्छत्तमूलो) एकान्त धर्म ही मिथ्यात्व का मूल है [वह] (रागादि-जणिदो) राग आदि से उत्पन्न (य) और (दुक्खाण हेदू) दु:खों का हेतु है [इसके विपरीत (सम्मत्तदिट्ठी) सम्यक्त्व युक्त दृष्टि (सुक्खाण हेदू) सुखों की हेतु है [ऐसा जिन्होंने] (वक्खाणिदो) व्याख्यान किया (तं) उन (सुपासं) सुपार्श्वनाथ को [मैं] (णमामि) नमन करता हूँ। दिवायरव्व जयदप्पयासी, णिसायरव्व सीयलत्तदायी । सुह-संतिकत्ता दोसाण हत्ता, चंदप्पहं चंद-चंदं णमामि ॥८॥ अन्वयार्थ- (दिवायरव्व जयदप्पयासी) सूर्य के समान जगत्प्रकाशी (णिसायरव्व सीयलत्तदायी) चन्द्रमा के समान शीतलता देने वाले (सुह-संतिकत्ता) सुख-शांति कर्ता [तथा (दोसाण हत्ता) दोषों के हर्ता (चंद-चंद) चन्द्रमा के समान सौम्य (चंदप्पह) चन्द्रप्रभु भगवान् को (णमामि) नमन करता हूँ |८|| गुत्तित्तियं पंच महव्वदाणि, पंचोवदिट्ठा समिदीए जेण । णवहा-पयत्थं सम्मं पणीदो, तं कुंदपुप्फव्व पुप्फं णमामि ॥९॥ ___ अन्वयार्थ- (जेण) जिन्होंने (गुत्तित्तियं) तीन गुप्तियाँ (पंच महव्वदाणि) पाँच महाव्रत (समिदीए पंच) पाँच समितियों का (उवदिट्ठा) उपदेश दिया [और] (णवहा-पयत्थं) नवप्रकार के पदार्थ (सम्मं पणीदो) अच्छी तरह प्रतिपादित किए (तं) उन (कुंदपुप्फव्व) कुंद-पुष्प के समान (पुष्फं) पुष्पदंत भगवान् को (णमामि) नमन करता हूँ। स-पर हिदस्स जिणणायगेण, आयारिदा सेट्ठखमादि धम्मा । सम्मत्त-झाणं दसहा पणीदो, तं सीयलं तित्थयरं णमामि ॥१०॥ अन्वयार्थ- [जिन] (जिणणायगेण) जिननायक ने (स-पर हिदस्स) स्व-पर हित के लिए (सेट्ठ खमादि धम्मा) श्रेष्ठ क्षमादि धर्म (आयारिदा) आचरित किए [तथा] (सम्मत्त-झाणं) सम्यक्त्व [और] ध्यान (दसहा पणीदो) दस प्रकार प्रतिपादित किया (तं) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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