Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur
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अन्यथा जीवन भी संकट में पड़ जाता है । 'चकार' से मन्त्र-तन्त्र और ज्योतिष का ग्रहण भी विवेकपूर्वक करना चाहिए ।
विजत्थी सेवगो राही, छुहत्तो भयकादरो । भंडारी पडिहारी य, सत्त सुत्ता हि बोधदे ॥ ९२ ॥
अन्वयार्थ- (विज्जत्थी) विद्यार्थी (सेवगो) सेवक ( राही ) पथिक (छुहत्तो) क्षुधातुर (भयकादरो) भयभीत (भंडारी) कोषाध्यक्ष (च) और ( पडिहारी) ( इन ) ( सत्त - सुत्ता हि बोधदे) सात सोते हुओं को जगा देना चाहिए ।
भावार्थ - विद्यार्थी, सेवक - नौकर, पथिक राहगीर, भोजन कराने के लिए क्षुधातुर, भयमुक्त करने हेतु भयभीत मनुष्य, कोष की सुरक्षा हेतु कोषाध्यक्ष को तथा देश की, नागरिकों की सुरक्षा के लिए पुलिस - सैनिक, इन सात को यदि ये सो रहे हों तब भी जगा देना चाहिए ।
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सप्पं णिवं च दुद्वं च अण्णं साणं च मुक्खं च
विंहिं च बालगं तहा । सत्त - सुत्ता ण बोधदे ॥९५॥
अन्वयार्थ - (सप्पं) सर्प (णिवं ) राजा (दुद्वं) दुष्ट (विंहिं) बर्र (बालगं) बालक (अण्णं साणं) दूसरों का कुत्ता ( तहा) तथा ( मुक्खं) मूर्ख (इन) (सत्त - सुत्ता ण बोधदे) सात सोते हुओं को जगाना नहीं चाहिए ।
भावार्थ- सर्प, राजा, दुर्जन व्यक्ति, बर्र - ततैया, बालक, दूसरों का कुत्ता तथा मूर्ख अथवा पागल मनुष्य इन सात सोते हुओं को जगाना नहीं चाहिए, क्योंकि ये जागकर महा - अनर्थ भी कर सकते हैं ।
एगरुक्ख समारुढा, णाणावण्णा विहंगमा । दिसासु- दससु ऊसाए, का तत्थ परिवेयणा ॥ ९६ ॥
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