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धम्मत्थकाम-पत्तत्थं, कल्लाणत्थं च मोक्खणं । समणेण सुणीलेण, किदं णीदी य संगहं ॥१०१॥
अन्वयार्थ- [मनुष्यों को (धम्मत्थकाम-पत्तत्थं) धर्म अर्थ काम की प्राप्ति के लिए निज के] (कल्लाणत्थं) कल्याण के लिए (च) और [दोनों के] (मोक्खणं) मोक्ष के लिए (समणेण सुणीलेण) श्रमण सुनीलसागर ने [यह] (णीदी संगह) नीतियों का संग्रह (किदं) किया है।
भावार्थ- सभी मनुष्यों को धर्म अर्थ तथा काम की प्राप्ति के प्रयोजन से, अपने (आत्म) कल्याण के प्रयोजन से और सभी भव्य जीवों को मोक्ष प्राप्ति के प्रयोजन से; श्रमण मुनि सुनीलसागर ने यह नीतियों का संग्रह किया है । .
॥ इदि णीदी-संगहो समत्तो ||
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