Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 87
________________ सुमंगलेण) मंगलमय अनंत कार्यों से (अणंतजम्मेण वि णो जादा) अनंत जन्मों में भी नहीं उत्पन्न होता है । पूजा जे कुव्वंति जिणेस्सराणं, झायंति वा भावविसुद्ध-चित्ता । ते सज्जणा ताव-विणासणटुं,पावंति मोक्खं सुह-सग्ग-भुत्ता ॥८॥ अन्वयार्थ- (जे) जो (ताव विणासण8) संसार ताप विनाश के प्रयोजन से (जिणेस्सराणं) जिनेन्द्र भगवंतों की (पूजा) पूजा (कुव्वंति) करते हैं (झायंति वा भावविसुद्ध चित्ता) अथवा अत्यन्त विशुद्ध भाव युक्त चित्त से ध्यान करते हैं (ते सज्जणा) वे सज्जन (सग्ग-सुह-भुत्ता) स्वर्ग सुख भोगकर (मोक्खं) मोक्ष को (पावंति) प्राप्त करते हैं । जय-मंगलं जय मंगलं णिच सुहमंगलं-२ जय विमल गुण णिलय सिद्धाणं ! ते-२ णिव्वाणपत्तो णिरुवी णिरुवमो, गुण अणंत जुत्तो णाणादि अणुवमो । गुण पुण्ण पत्तं कल्लाणं ! ते जय विमल.॥१॥ जोगीणं झाणगम्म परम सुहमओ, कम्म-णोकम्महीण, सुद्धविणो । दुह-हत्ता जीवाण भव्वाणं ! ते जय विमल. ॥२॥ सद्द गंध रस रूव आदि विरहिदो, असरीर तणु-पमाण सुद्ध सहिदो । लोय-सिहर वासी य पुण्णाणं ! ते जय विमल.||३|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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